तक़दीर
एक दिन तक़दीर रुबरू हुई
पूछने लगी कैसे हैं हाल
जवाब में खुद ही बोली
मैं तुम्हारी हूँ यही है कमाल
फिर बीते कुछ और दिन महीने साल
ज़िंदगी की किताब में बाब जुड़ते गए
होने लगा कुछ और यक़ीन उस मुलाक़ात पे
दौर कुछ और कुछ हसीं कुछ तंग गए
बस वो दिन था और एक आज है
हर गुज़रे पल की एहमियत पहचानते हैं
मिली थी जो उस दिन यकायक हमें
वो तक़दीर तुम हो बस ये जानते हैं
तुम ख़ुश रहो ख़ुशहाल रहो
हर दिन ये दुआ माँगते हैं
तुम्हारी हर ख़ुशी में है हमारी ख़ुशी
उस रोज़ से हम यही मानते हैंअनकही
मैंने अनकही सुनी है सुनी है मैंने वो सारी बातें जो किसी ने मुझसे न कही है सहमी हुई धडकनों की आवाज़ छपक्ति पलकों के अंदाज़ तेज़ दौड़ती साँसों की हर बात इन सब में छुपे वो सारे राज़ हाँ मैंने अनकही सुनी है मुस्कुराहटों के तले दबी तड़पन बदलते सुलघते रिश्तों में पड़ती अड़चन बर्बादी की ओर बढ़ते कदम अंजाम से अनजान बेपरवाह उन सभी समझौतों को हाँ मैंने अनकही सुनी है ऊँची उड़ानों में डूबते अरमानों को बुरे वक़्त में बदलते इंसानों को दोस्ती में पड़ती दरारों का आगाज़ टूटे दिल में थमती हरकत मासूम आँखों ने जो पूछे तमाम उन सभी सवालों को हाँ मैंने अनकही सुनी है सुनी है मैंने वोह सारी बातें जो किसी ने मुझसे न कही है