Kisi Roz (किसी रोज़)
कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे एक बार पीछे मुड के देखा के नहीं याद में हमारी दो बूँद रोये के नहीं कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे जब भी गुज़रे होगे तुम गली से हमारी एक नज़र तो फ़ेराई होगी दर पे हमारी कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे वो जो यादें बनाई थीं उन यदों का क्या हुआ वो जो क़समें लीं थी उन क़समों का क्या हुआ कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे के इतने बरसों में तुमने क्या क्या भुला दिया जो थी कशिश दरमियाँ उसे कैसे मिटा दिया कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे क्या समझे थे जिसे वो प्यार था भी या नहीं क्या ये दर्द बेवजह है और तुम बेवफ़ा नहीं कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे
बीते लम्हे
बीते लम्हे, लोग और दिन
लौट के वापस आते नहीं हैं
गुज़रते कारवाँ के हैं ये राही
सिर्फ़ अपने निशान छोड़ जाते हैं
टेढ़े मेढ़े हैं जीवन के रास्ते मगर
कई बार उसी मोड़ से जाते हैं
चलते क़दम जाने अनजाने
किसी मंज़र पे थम जाते हैं
यादों को कभी मलहम बना
तो कभी सदा कह के बुला लाते हैं
फिर एक बार कुछ पल के लिए ही सही
याद किसी के होने का एहसास दिलाती हैं
यादों के कारवाँ चलते हैं जब
निशानियों पे रास्ते फिर बन जाते हैं
बीते लम्हे, लोग और दिन
सब लौट आते हैंबदलते रिश्ते
नाज़ुक होतें हैं ये सम्हाल कर इन्हें रखिएगा रेशम की डोरियाँ हैं ये गर तन जायें तो ज़ख़्म ही पाइएगा क्यों कर उलझते हैं रिश्ते सर्द शीशे से चटक जातें हैं रिश्ते जाने कब और कैसे बिखर जातें हैं यकायक अपने बेपरवाह हो जातें हैं कब बचा है कोई इस रंज-ओ-ग़म से किसे मिलती है दवा जियें जिस के दम पे यारी दोस्ती प्यार वफ़ा सब बेमानी है बिगड़ी भली जैसी हो बस चलानी है गाँठ पड़ी डोर तो कमज़ोर हो ही जाती है जुड़े आइने में दरार फिर भी नज़र आती है नाते रिश्तों की तो बस यही कहानी है जो हाथ लगा वो मिट्टी जो बह गया सो पानी है
यक़ीन-ए-इश्क़
भुला पाओगे नहीं ये यक़ीन है मेरा जाओ फिर भी तुम्हें ये मौक़ा दिया कहाँ पाओगे ऐसा जैसा प्यार मेरा लो ये भी दुआ दे आज़ाद किया नहीं देंगे तुझे आवाज़ फिर न देखेंगे कभी फिर कूचा तेरा भुला देंगे सब कुछ तेरे ख़ातिर न याद कराएंगे कोई वादा तेरा दूर कहीं जा कर दुनिया से मेरी नया अपना जहाँ बसा लेना भूले से महक न आए मेरी काग़ज़ के फ़ूल सजा लेना गर याद फिर भी आए जो मेरी आँखें अपनी बंद कर लेना दिल तोड़ेंगे तेरा ख़्यालों में तेरी तुम बेवफ़ा मुझे फिर कह देना ये इल्ज़ाम भी अपने सर ले लेंगे बस तुम अपना सब्र रख लेना इश्क़ किया था माफ़ भी कर देंगे बस एक फ़ूल मेरी कब्र पर रख देना