• Hindi Poetry | कविताएँ

    साया

    लिखने की चाहत तो बहुत है
    जाने क्यों कलम साथ नहीं
    जज़्बात सियाही से लिखे लफ़्ज़ नहीं
    मेरे बेलगाम बहते अश्क़ बयां कर रहें हैं
    
    अभी तो बैठे थे फ़िलहाल ही लगता है
    पलट गयी दुनिया कैसे ये मालूम नहीं
    जाने वाले की आहट भी सुनी नहीं
    सर पे से अचानक साया हठ गया है
    
    वो जो ज़ुबान पे आ के लौट गयी वो बातें बाक़ी है
    अब कहने का मौक़ा कभी मिलेगा नहीं
    हाय वक़्त रहते क्यों कहा नहीं
    कुछ दिन से ये सोच सताती है
    
    अल्फ़ाज़ बुनता हूँ मगर उधड़ जाते हैं
    ख़यालों जितना उन में वज़न नहीं
    डर भी है ये विरासत कहीं खोए नहीं
    मगर यक़ीन-ए-पासबाँ भी मज़बूत है
    
    लिखने की चाहत तो बहुत है
    जाने क्यों कलम साथ नहीं
    जज़्बात सियाही से लिखे लफ़्ज़ नहीं
    मेरे बेलगाम बहते अश्क़ बयां कर रहें हैं
    
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    अब तक त्रेपन

    गर यूँ अचानक छोड़ न देती साथ
     तो आज तुम त्रेपन की होती
     न कटी होती तुम से ये जो डोर
     तो कहाँ बातें हमारी कभी पूरी होतीं
    
     अनोखा बड़ा था तुम्हारा प्यार दिखाने का ढंग
     आज तुम्हारे वो थप्पड़ कितनी ख़ुशी से क़ुबूल होते
     काटे जो लम्हा लम्हा लड़ झगड़ तुम्हारे संग
     वैसे ही काश कुछ पल और मिल गए होते
    
     कभी दीदी, कभी सहेली, तो कभी माँ
     ऐसी सरलता से तुम रूप बदल लेती
     करती बदमाशी भी मेरी तरह
     कभी सज़ा भी तुम ही देती
    
     कितना मज़ा होता ज़िंदगी साथ जीने में
     राहें कटतीं जो तेरे संग, कितनी ये आसान होतीं
     न छिन गया होता जो हमसे तुम्हारा हाथ
     तो आज तुम त्रेपन की होती