एक शहर था…
एक शहर था प्यारा फ़ूलों का महका करती थी हर गली जिसकी दिल दरिया हुआ करता था उसके लोगों का समाते थे जिस में विभिन्न जाति प्रांत के लोग सभी फिरते थे जब गली बाज़ारों में अनेकों बोलियां श्रवण में आती थी पोंगल दशहरा हब्बा ईद त्योहारों पर गलियां एक सी सजती थी फिर एक दिन सब कुछ बदल गया सिक्का मतलबपरस्ती का मानो ऐसा चल गया काम छोड़कर नामों मे पहचान हर किसी की ढूंढी गई पानी ने आग लगा डाली पहले जो बुझाया करती थी जल रहा वो शहर फूलों का दहक रही हैं गलियां अब उसकी तांडव हिंसा का चल रहा कौन सुन रहा गुहार उसकी
निश्चय
दूर भले ही हो मंज़िल कदम कदम बढ़ाना है पथ में थक जाए जो साथी हर दम साथ निभाना है मिलजुल के चलेंगे हम हमें अपना कल आज बनाना है तूफ़ान भले ही हो प्रबल हमको तो दीप जलाना है उम्मीद से है हर दिल रोशन हमें ज्योत से ज्योत जगाना है मिलजुल के चलेंगे हम हमें अपना कल आज बनाना है कठिनाई चाहे हो अनेक जूझ के उन्हें हटाना है बादल चाहे हो घने बरस के तो छट जाना है मिलजुल के चलेंगे हम हमें अपना कल आज बनाना है थकना नहीं है रुकना नहीं है सपनों को सच कर के दिखाना है ख़ुशियों से भरा होगा हर घर भारत ने अब यही ठाना है मिलजुल के चलेंगे हम हमें अपना कल आज बनाना है