एहसास (ehsaas)
आज दिल में एक भारी सा एहसास है
यादों से लदी हुई हर घड़ी हर सॉस है
वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम है ऐसा कहते हैं
जाने क्यों मगर ज़िन्दगी के घाव ताज़ा ही रहते हैं
सजा के तो कई अरमान रखे थे यूँ लोगों ने
अब तो वो भी ग़ुम हो गए संजोए थे जिन्होंने
आँगन में धूप तो आज भी वही खिलती है
बारिश की बूँदे वही अटखेलियाँ करती हैं
पसंदीदा पकवानों में सिमटा उस रिश्ते का ज़ायक़ा है
बच्चों की किसी हरकत में अब होता आभास है
अकेले हो जाने का दर्द यूँ बस सम्भाला है मैने
दिल में हैं महफूज़ अज़ीज़ जहाँ रहना था उन्होंने