• Hindi Poetry | कविताएँ

    आज

    मेरे जज़्बात कुछ उलझे उलझे से हैं 
    मेरे हालात कुछ बदले बदले से हैं
    जिस कलम की नोक से अल्फ़ाज़ बहते थे
    आज उसके नीचे काग़ज़ कोरे कोरे पड़े हैं

    ज़िन्दगी और जीने के मायने अलग हो चले हैं
    पीरी के साथ ख़यालात अब कुछ सुलझ गए हैं
    जो कभी रातों का सवेरा रोज़ किया करते थे
    आज वो चंद पलों की फुर्सत से कतरा रहें हैं

    मंज़िल और पड़ाव का फ़र्क़ धुंधला रहा है
    सफ़र शायद अपने अंजाम तक आ रहा है
    ये चश्म जो कभी साथी ढूँढते थे
    आज वो साथ छूटने से घबरा रहें हैं

    अब तो इंतज़ार ही मकसद बन चुका है
    हर लम्हा अगले लम्हे के लिए बीत रहा है
    जो कभी कल की फ़िक्र को धुएँ में उड़ाते थे
    आज वो आने वाले कल को देख पा रहें हैं