• Hindi Poetry | कविताएँ

    Pahalgam

    एक लम्हा ही काफ़ी है 
    जन्नत को दोज़ख़ बनाने के लिए
    इंसानियत को मरना पड़ता है
    इंसान को मारने के लिए

    हद और सरहद दोनों बेमानी हैं
    नफ़रत को घर करने के लिए
    असली कातिल तो ये सियासत है
    बेगुनाह क़ुर्बान किए जाते हैं जिसके लिए

    क्या ज़िंदगी का मिटाना ज़रूरी है
    नुक्ता-ए-नज़र को आगे रखने के लिए
    क्या इतनी हैवानियत लाज़िम है
    किसी भी ख़ुदा की बंदगी के लिए

    अरसों के बाद मुश्किल से गुल खिले हैं
    मरहम से लगने लगे थे ज़ख़्मों के लिए
    जाने कितने और फ़ासले अब भी हैं
    बर-रू-ए-ज़मीं फ़िरदौस के लिए
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    कश्मीर

    रौनक़ लगाते रौशन गली गलियारे
     सजते थे सूखे चिनार के पत्ते सड़क किनारे
    
     बर्फ़ की सफ़ेद चादर ओढ़े होते सर्द सवेरे
     फ़िरन तले गरमी देते कांगड़ी के नर्म अंगारे
    
     सिराज बाग़ में सजे लाखों फूल वो प्यारे
     दल पे हौले सरकते छोटे बड़े सुंदर शिकारे
    
     हरी हरी वादी के यादगार लुभावने नज़ारे
     सैर सपाटे शांत बहते जहलम किनारे
    
     हुस्न जिसका हर मौसम अलग निखारे
     यूँ ही नहीं कहते थे इसे लोग जन्नत सारे
    
     फिर मौसम बदला गूँजने लगे नारे
     बिखरे अचानक ख़्वाब जो संवारे
    
     मुट्ठी भर की ज़िद ने हज़ारों मारे
     खेल खेलने लगे सियासतदाँ हमारे
    
     पहचान हमारी जो है हमें झमूरियत पुकारे
     ज़रूरी है के जब देश जीते कश्मीरियत ना हारे