• Hindi Poetry | कविताएँ

    साया

    लिखने की चाहत तो बहुत है
    जाने क्यों कलम साथ नहीं
    जज़्बात सियाही से लिखे लफ़्ज़ नहीं
    मेरे बेलगाम बहते अश्क़ बयां कर रहें हैं
    
    अभी तो बैठे थे फ़िलहाल ही लगता है
    पलट गयी दुनिया कैसे ये मालूम नहीं
    जाने वाले की आहट भी सुनी नहीं
    सर पे से अचानक साया हठ गया है
    
    वो जो ज़ुबान पे आ के लौट गयी वो बातें बाक़ी है
    अब कहने का मौक़ा कभी मिलेगा नहीं
    हाय वक़्त रहते क्यों कहा नहीं
    कुछ दिन से ये सोच सताती है
    
    अल्फ़ाज़ बुनता हूँ मगर उधड़ जाते हैं
    ख़यालों जितना उन में वज़न नहीं
    डर भी है ये विरासत कहीं खोए नहीं
    मगर यक़ीन-ए-पासबाँ भी मज़बूत है
    
    लिखने की चाहत तो बहुत है
    जाने क्यों कलम साथ नहीं
    जज़्बात सियाही से लिखे लफ़्ज़ नहीं
    मेरे बेलगाम बहते अश्क़ बयां कर रहें हैं
    
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    साया

    Image may contain: tree, outdoor and nature, text that says "साया सुधाम २०२०"
    लिखने की चाहत तो बहुत है
    जाने क्यों कलम साथ नहीं
    जज़्बात सियाही से लिखे लफ़्ज़ नहीं
    मेरे बेलगाम बहते अश्क़ बयां कर रहें हैं
    
    अभी तो बैठे थे फ़िलहाल ही लगता है
    पलट गयी दुनिया कैसे ये मालूम नहीं
    जाने वाले की आहट भी सुनी नहीं
    सर पे से अचानक साया हठ गया है
    
    वो जो ज़ुबान पे आ के लौट गयी वो बातें बाक़ी है
    अब कहने का मौक़ा कभी मिलेगा नहीं
    हाय वक़्त रहते क्यों कहा नहीं
    कुछ दिन से ये सोच सताती है
    
    अल्फ़ाज़ बुनता हूँ मगर उधड़ जाते हैं
    ख़यालों जितना उन में वज़न नहीं
    डर भी है ये विरासत कहीं खोए नहीं
    मगर यक़ीन-ए-पासबाँ भी मज़बूत है
    
    लिखने की चाहत तो बहुत है
    जाने क्यों कलम साथ नहीं
    जज़्बात सियाही से लिखे लफ़्ज़ नहीं
    मेरे बेलगाम बहते अश्क़ बयां कर रहें हैं