माँ (Maa)
जाने कितनी दफ़ा कंधे पे तेरे सर रख के घंटों सोया हूँ मैं जाने कितनी दफ़ा तेरे आँचल तले बिलख़ के रोया हूँ मैं जाने कितनी दफ़ा मेरी छोटी सी छींक ने रात भर जगाया होगा जाने कितनी दफ़ा मेरी किसी नादानी ने तेरा दिल दुखाया होगा जाने कितनी दफ़ा मेरे भविष्य की चिंता तूने की होगी जाने कितनी दफ़ा मेरी एक पुकार पे तुम हर काम छोड़ भागी होगी जाने कितनी दफ़ा ये सोचता हूँ क्या मैंने तुम्हें गर्वान्वित होने का कभी मौक़ा दिया जाने कितनी दफ़ा ये सोचता हूँ क्या अलग करता कैसे मैंने तुम्हें यूँ अचानक खो दिया जाने कितने दफ़ा मैं ख़ुद को और लोग मुझको इसे होनी की चाल बताते हैं जाने कितनी दफ़ा यादें और ख़याल तेरे होने का एहसास दिलाते हैं जाने कितनी दफ़ा फिर दो आसूँ बहा तुम्हारा स्मरण करता हूँ जाने कितनी दफ़ा शीश झुका के माँ तेरे जीवन को नमन करता हूँ
जो कह न सका
कहने को तो बहुत कुछ है लेकिन आज भी कहा नहीं जाता ऐसा होता तो है मगर होता क्यों है के दिल में आया ख़याल अंजाम नहीं पाता काश के कह दिया होता जो कहना था फिर वक़्त पे मैं ये इल्ज़ाम न लगाता आपकी इज़्ज़त करना जिसे सोचा था उस एहतिराम को बीच का फ़ासला न बनाता अब उम्मीद यही करता हूँ हर बार ये के सुन ही लेते थे आप जो मैं ज़ुबान पे न लाता यक़ीनन पहुँच रहा होगा मेरा दर्द भी ये वरना इतना मुझ से अकेले सँभाला नहीं जाता बस गयें हैं आप शायद अब कहीं मुझ में ही आप से जुदा चेहरा मेरा आईना नहीं बतलाता हर रोज़ रूबरू होता हूँ मैं यूँ अब आप से इसीलिए मैं इस बात का शोध नहीं मनाता कहने को तो बहुत कुछ है लेकिन आज भी कहा नहीं जाता
Kisi Roz (किसी रोज़)
कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे एक बार पीछे मुड के देखा के नहीं याद में हमारी दो बूँद रोये के नहीं कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे जब भी गुज़रे होगे तुम गली से हमारी एक नज़र तो फ़ेराई होगी दर पे हमारी कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे वो जो यादें बनाई थीं उन यदों का क्या हुआ वो जो क़समें लीं थी उन क़समों का क्या हुआ कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे के इतने बरसों में तुमने क्या क्या भुला दिया जो थी कशिश दरमियाँ उसे कैसे मिटा दिया कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे क्या समझे थे जिसे वो प्यार था भी या नहीं क्या ये दर्द बेवजह है और तुम बेवफ़ा नहीं कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे
Humsafar(हम)सफर
मीलों का ये सफ़र है
तेरे संग जो है तय करना
एक नहीं कई मंज़िलें हैं
तेरे साथ जिनको है पाना
मिलेंगे राहगुज़ार और भी हमें
कुछ मिलनसार कुछ बदमिज़ाज होंगे
कोई उकसायेगा कोई भटकायेगा हमें
जूझेंगे उनसे और हर सितम झेल लेंगे
मुश्किलें भी कई पेश आयेंगी
हालात हमारे ख़िलाफ़ होंगे
कुछ पल को राहें भी जुदा लगेंगी
मगर एक दूसरे को हम सँभाल लेंगे
सात कदम, सात जन्म, सात समंदर
मेरी नज़र में हर दूरी तेरी सोहबत में कम है
तू जहाँ वहीं चैन वहीं सुकून है दिल के अंदर
मोहब्बत और दोस्ती पाने नहीं निभाने का नाम हैतक़दीर
एक दिन तक़दीर रुबरू हुई
पूछने लगी कैसे हैं हाल
जवाब में खुद ही बोली
मैं तुम्हारी हूँ यही है कमाल
फिर बीते कुछ और दिन महीने साल
ज़िंदगी की किताब में बाब जुड़ते गए
होने लगा कुछ और यक़ीन उस मुलाक़ात पे
दौर कुछ और कुछ हसीं कुछ तंग गए
बस वो दिन था और एक आज है
हर गुज़रे पल की एहमियत पहचानते हैं
मिली थी जो उस दिन यकायक हमें
वो तक़दीर तुम हो बस ये जानते हैं
तुम ख़ुश रहो ख़ुशहाल रहो
हर दिन ये दुआ माँगते हैं
तुम्हारी हर ख़ुशी में है हमारी ख़ुशी
उस रोज़ से हम यही मानते हैंSaath (साथ)
जब मंज़िलें धुंदली हों और जब रास्ते हो अनजाने क्या तुम साथ दोगे जब सासें फूलने लगे और चलना हो नामुमकिन क्या तुम साथ दोगे जब हौंसले हो तंग और जब हिम्मत न बन्धे क्या तुम साथ दोगे जब उम्मीदें जॉए बिखर और निराशा ही हाथ लगे क्या तुम साथ दोगे जब जेबें हो खाली और तेज़ भूक लगे क्या तुम साथ दोगे जब चिलचिलाती हो धुप और कहीं छाँव न दिखे क्या तुम साथ दोगे जब सब दामन चुरा लें और कोई मान न दे क्या तुम साथ दोगे जब सात वचन मैं लूँ ये और हाँ कह निभाऊँ उम्र भर उन्हें क्या तुम साथ दोगे
तू है…के नहीं?
आज एक याद फ़िर ताज़ा हो चली है संग वो अपने सौ बातें और हज़ार एहसास ले चली है तोड़ वक़्त के तैखाने की ज़ंजीरें खुली आँखों में टंग गयी बीते पलों में बसी तस्वीरें सुनाई साफ़ देती है हर बात अफ़सानों का ज़ायका और निखर गया है सालों के साथ दर्द और ख़ुशी का अजब ये मेल है संग हो तुम फिर भी नहीं हो बस यही क़िस्मत का खेल है
किसे पता था
किसे पता था के एक दिन ये चेहरा मुझ से यूँ जुड़ जायेगा अपरिचित अनजान वो मेरी पहचान बन जायेगा किसे पता था ये मौक़ा भी आयेगा परिचय कोई कारवायेगा पहचाने उस चेहरे को एक नाम वो दिलायेगा किसे पता था जान पहचान एक दिन दोस्ती भी बन जायेगी पटरियाँ साथ साथ चलते इतनी दूर आ जायेंगी किसे पता था रेल के उन डिब्बों में बैठ आते जाते बतियाते दिलों की डोर यूँ बंध जायेगी किसे पता था सात क़दम चल सात वचन ले कर हमसफ़र जीवन के हम दोनों बन जायेंगे किसे पता था
बीते लम्हे
बीते लम्हे, लोग और दिन
लौट के वापस आते नहीं हैं
गुज़रते कारवाँ के हैं ये राही
सिर्फ़ अपने निशान छोड़ जाते हैं
टेढ़े मेढ़े हैं जीवन के रास्ते मगर
कई बार उसी मोड़ से जाते हैं
चलते क़दम जाने अनजाने
किसी मंज़र पे थम जाते हैं
यादों को कभी मलहम बना
तो कभी सदा कह के बुला लाते हैं
फिर एक बार कुछ पल के लिए ही सही
याद किसी के होने का एहसास दिलाती हैं
यादों के कारवाँ चलते हैं जब
निशानियों पे रास्ते फिर बन जाते हैं
बीते लम्हे, लोग और दिन
सब लौट आते हैंउलफ़त
उनकी उलफ़त का ये आलम है
के कोरे कागज़ पे भी ख़त पढ़ लिया करतें हैं
ज़िन्दगी ऐसी गुलिस्तां बन गयी उनके प्यार में
के कागज़ के फूलों में ख़ुशबू ढूँढ लिया करतें हैं
हम तो फिर भी आशिक़ हैं
मानने वाले तो पत्थर में ख़ुदा को ढूँढ लिया करतें हैं