• Hindi Poetry | कविताएँ

    झलक

    देखते देखते पूरा एक साल बीत गया
    श्रृष्टि के नियमानुसार फ़िर काल जीत गया
    जीवन है, लगी तो रहती ही है आनी जानी
    इस ताल को वश में कर पाया नहीं कोई ज्ञानी

    समय और संवेदना हृदय की पीड़ा हर नहीं पाते
    कुछ रिश्ते किसी भी जतन भुलाए नहीं भुलाते
    साये जो हट जातें हैं बड़ों के कभी सिर से
    लाख चाहे किसी के मिल नहीं पाते फ़िर से

    जीवन का चक्का तो निरंतर घूमता ही रहता है
    हर पल हर दिन एक नई कहानी गढ़ देता है
    पात्र बदल जातें हैं कुछ, कुछ बदले आतें हैं नज़र
    मोह का भी क्या है नया बना लेता है अपना घर

    दौड़ती फिरती है ये यादें मगर कुछ बेलगाम सी
    बातों और आदतों में ढूँढ लेती हैं झलक उनकी
    बीते दिनों के किस्सों से अपना मन भर लेता हूँ
    मन हो भारी तो उनको बंद आँखों में भर लेता हूँ
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    चिट्ठी

    मैं ख़ुश हूँ पापा 
    और मुझे मालूम है
    के इस बात को जान
    आप कई ज़्यादा ख़ुश होते

    बीते चार सालों में
    कुछ पाया और
    बहुत कुछ खोया है
    “जीवन है”, आप यही कहते

    बड़ी वाली की बातों
    छोटी की आदतों
    आपकी बहू के अक्खड़पन में भी
    आप मुझे नज़र आते हो

    हर रोज़ मैं अपने आप को
    आपके जैसे किसी साँचे में
    ढालने की हिम्मत जुटाता हूँ
    कुछ देर के लिए आप बन जाता हूँ

    बातें तो बहुत और भी थीं
    जो बताने सुनाने की सोची थी
    आप पास ही हो कहीं शायद
    क्योंकि इस ख़याल से अब भी सहम जाता हूँ
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    जो तुम होतीं

    अरसे से दिल कुछ भारी सा है 
    एक ख़याल दिमाग़ पे हावी सा है

    माँ आज जो तुम दुनिया में होतीं
    तो पूरे अस्सी साल की हो जातीं

    तुम्हारे ना होने की आदत ही नहीं डल रही
    इतनी यादें हैं तुम्हारी जो धुंधली नहीं पड़ रहीं

    हर सुबह की वो नोंक-झोंक के चाय कौन बनाएगा
    या इस बात पे बहस की क्या कभी देश में
    राम राज्य आयेगा

    कईं और भी मनसूबे किए थे जो बिखरे पड़े हैं
    ख़त्म होने चलें हैं आँसू मेरे, नैनों में सूखे पड़ें हैं

    इस बरस cake की मोमबत्ती नहीं तेरी याद में दिया जलेगा
    वक्त को अब धीरे धीरे मेरा ये ज़ख़्म भी भरना पड़ेगा
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    न्योता (Nyota)

    महज़ वक़्त के बीतने से 
    किसीकी याद घटती नहीं
    
    बिछोड़े के काटे से
    रिश्तों कि डोर कटती नहीं
    
    दिलों में छपी तस्वीरें
    अंधेरों में ओझल होतीं नहीं
    
    विचलित मन की आँखों में
    नींद आसानी से समाती नहीं
    
    ख़यालों में गूँजती पुकार
    खुली आँख सुनाई देती नहीं
    
    ये जो ऋणों का बंधन है 
    वो चुकाये उतरता नहीं
    
    कोई है उस पार गर जहाँ तो
    बिन बुलावे के कोई जा पाता नहीं
    
    फ़िलहाल कोशिश है खुश रखें और रहें 
    दुःख अपना अपनों पे और लादा जाता नहीं
    
    जीवन है,  हर धुन, हर रंग में रमना है, रमेंगें
    द्वार पे जब तक यम न्योता ले के आता नहीं