Humsafar(हम)सफर
मीलों का ये सफ़र है
तेरे संग जो है तय करना
एक नहीं कई मंज़िलें हैं
तेरे साथ जिनको है पाना
मिलेंगे राहगुज़ार और भी हमें
कुछ मिलनसार कुछ बदमिज़ाज होंगे
कोई उकसायेगा कोई भटकायेगा हमें
जूझेंगे उनसे और हर सितम झेल लेंगे
मुश्किलें भी कई पेश आयेंगी
हालात हमारे ख़िलाफ़ होंगे
कुछ पल को राहें भी जुदा लगेंगी
मगर एक दूसरे को हम सँभाल लेंगे
सात कदम, सात जन्म, सात समंदर
मेरी नज़र में हर दूरी तेरी सोहबत में कम है
तू जहाँ वहीं चैन वहीं सुकून है दिल के अंदर
मोहब्बत और दोस्ती पाने नहीं निभाने का नाम हैतक़दीर
एक दिन तक़दीर रुबरू हुई
पूछने लगी कैसे हैं हाल
जवाब में खुद ही बोली
मैं तुम्हारी हूँ यही है कमाल
फिर बीते कुछ और दिन महीने साल
ज़िंदगी की किताब में बाब जुड़ते गए
होने लगा कुछ और यक़ीन उस मुलाक़ात पे
दौर कुछ और कुछ हसीं कुछ तंग गए
बस वो दिन था और एक आज है
हर गुज़रे पल की एहमियत पहचानते हैं
मिली थी जो उस दिन यकायक हमें
वो तक़दीर तुम हो बस ये जानते हैं
तुम ख़ुश रहो ख़ुशहाल रहो
हर दिन ये दुआ माँगते हैं
तुम्हारी हर ख़ुशी में है हमारी ख़ुशी
उस रोज़ से हम यही मानते हैंकिसे पता था
किसे पता था के एक दिन ये चेहरा मुझ से यूँ जुड़ जायेगा अपरिचित अनजान वो मेरी पहचान बन जायेगा किसे पता था ये मौक़ा भी आयेगा परिचय कोई कारवायेगा पहचाने उस चेहरे को एक नाम वो दिलायेगा किसे पता था जान पहचान एक दिन दोस्ती भी बन जायेगी पटरियाँ साथ साथ चलते इतनी दूर आ जायेंगी किसे पता था रेल के उन डिब्बों में बैठ आते जाते बतियाते दिलों की डोर यूँ बंध जायेगी किसे पता था सात क़दम चल सात वचन ले कर हमसफ़र जीवन के हम दोनों बन जायेंगे किसे पता था
बीते लम्हे
बीते लम्हे, लोग और दिन
लौट के वापस आते नहीं हैं
गुज़रते कारवाँ के हैं ये राही
सिर्फ़ अपने निशान छोड़ जाते हैं
टेढ़े मेढ़े हैं जीवन के रास्ते मगर
कई बार उसी मोड़ से जाते हैं
चलते क़दम जाने अनजाने
किसी मंज़र पे थम जाते हैं
यादों को कभी मलहम बना
तो कभी सदा कह के बुला लाते हैं
फिर एक बार कुछ पल के लिए ही सही
याद किसी के होने का एहसास दिलाती हैं
यादों के कारवाँ चलते हैं जब
निशानियों पे रास्ते फिर बन जाते हैं
बीते लम्हे, लोग और दिन
सब लौट आते हैंउलफ़त
उनकी उलफ़त का ये आलम है
के कोरे कागज़ पे भी ख़त पढ़ लिया करतें हैं
ज़िन्दगी ऐसी गुलिस्तां बन गयी उनके प्यार में
के कागज़ के फूलों में ख़ुशबू ढूँढ लिया करतें हैं
हम तो फिर भी आशिक़ हैं
मानने वाले तो पत्थर में ख़ुदा को ढूँढ लिया करतें हैंदिवाली
इस बरस दिवाली के दियों संग कुछ ख़त भी जल गये कुछ यादों की लौ कम हुई कुछ रिश्ते बुझ गये भूले बंधनों के चिरागों तले अँधेरे जो थे वो मिट गये बनके बाती जब जले वो रैन भर सारे शिकवे जो थे संग ख़ाक हो गये
बदलते रिश्ते
नाज़ुक होतें हैं ये सम्हाल कर इन्हें रखिएगा रेशम की डोरियाँ हैं ये गर तन जायें तो ज़ख़्म ही पाइएगा क्यों कर उलझते हैं रिश्ते सर्द शीशे से चटक जातें हैं रिश्ते जाने कब और कैसे बिखर जातें हैं यकायक अपने बेपरवाह हो जातें हैं कब बचा है कोई इस रंज-ओ-ग़म से किसे मिलती है दवा जियें जिस के दम पे यारी दोस्ती प्यार वफ़ा सब बेमानी है बिगड़ी भली जैसी हो बस चलानी है गाँठ पड़ी डोर तो कमज़ोर हो ही जाती है जुड़े आइने में दरार फिर भी नज़र आती है नाते रिश्तों की तो बस यही कहानी है जो हाथ लगा वो मिट्टी जो बह गया सो पानी है
यक़ीन-ए-इश्क़
भुला पाओगे नहीं ये यक़ीन है मेरा जाओ फिर भी तुम्हें ये मौक़ा दिया कहाँ पाओगे ऐसा जैसा प्यार मेरा लो ये भी दुआ दे आज़ाद किया नहीं देंगे तुझे आवाज़ फिर न देखेंगे कभी फिर कूचा तेरा भुला देंगे सब कुछ तेरे ख़ातिर न याद कराएंगे कोई वादा तेरा दूर कहीं जा कर दुनिया से मेरी नया अपना जहाँ बसा लेना भूले से महक न आए मेरी काग़ज़ के फ़ूल सजा लेना गर याद फिर भी आए जो मेरी आँखें अपनी बंद कर लेना दिल तोड़ेंगे तेरा ख़्यालों में तेरी तुम बेवफ़ा मुझे फिर कह देना ये इल्ज़ाम भी अपने सर ले लेंगे बस तुम अपना सब्र रख लेना इश्क़ किया था माफ़ भी कर देंगे बस एक फ़ूल मेरी कब्र पर रख देना
धुन
अनसुनी सी एक धुन है लफ़्ज़ जिसमें गुम हैं सुर उसके सासों से सजते हैं और देती धड़कनें ताल हैं दबी हुई थी कहीं वो सालों से जाने किस पल के इंतेज़ार में ख़ुद से ख़ुद बेख़बर हो के मानो कुछ ढूँड़ रही थी फ़िलहाल में एकाएक दिल के ढोल जब बजने लगे सहमे सुस्त पड़े पैर थिरकने लगे होंठ बजाने लगे जब यूँ ही सीटियाँ हाथ दोनों जब स्वयं लगे देने तालियाँ लय बन लहर दौड़ गई है जो जीवन को जीवन्त कर रही है वो हर तान से एक नई तरंग जो उठती है इश्क़ नाम है धुन का - वही ज़िंदगी है अनसुनी सी एक धुन है लफ़्ज़ जिसमें गुम हैं