कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे
एक बार पीछे मुड के देखा के नहीं
याद में हमारी दो बूँद रोये के नहीं
कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे
जब भी गुज़रे होगे तुम गली से हमारी
एक नज़र तो फ़ेराई होगी दर पे हमारी
कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे
वो जो यादें बनाई थीं उन यदों का क्या हुआ
वो जो क़समें लीं थी उन क़समों का क्या हुआ
कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे
के इतने बरसों में तुमने क्या क्या भुला दिया
जो थी कशिश दरमियाँ उसे कैसे मिटा दिया
कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे
क्या समझे थे जिसे वो प्यार था भी या नहीं
क्या ये दर्द बेवजह है और तुम बेवफ़ा नहीं
कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे