मेरा आज जाने क्यों मेरे कल से रूठा है
पल पल कुढ़ता है उसे सोच के जो बीता है
नाराज़गी इस क़दर है की कहता है कल झूठा है
कैसे बतलाऊँ की हर आज बीते कल में भी जीता है
सपने तो बहुत देखें थे आज के लिए मेरे कल ने
अरमान भी बड़े बड़े सजाए थे मुस्तकबिल के
कितनी शिद्दत भरी थी कल की हर एक दुआ में
महनत भी शामिल थी जिसके की कल काबिल थे
पर मेरे आज को तो अपनी हक़ीक़त से मतलब है
जो सच हुआ, हो पाया, बस वही तो आज और अब है
हसरतें लेकिन मेरे आज की भी कम नहीं, बहुत हैं
कुछ ज़्यादा, कुछ बेहतर, कुछ बढ़कर मेरे आज की तलब है
क्यों मेरा आज बीते अपने ही कल को नहीं पहचानता
क्यों वो अपना समझ के मेरे कल का हाथ नहीं थामता
आनेवाली सुबह में खुद गुल हो जाएगा क्यों नहीं मानता
वो भी किसी आज का कल होगा क्या ये नहीं जानता
भला सोचो सब जान के भी यूँ अनजान बना क्यों मेरा आज पड़ा है
किस लिए आज ज़िद्द पकड़े अपनी बात पे ही ऐसे अड़ा है
पहला तो नहीं है शायद मेरा ये आज जो अपने कल से लड़ा है
एक बीत गया, एक आया नहीं, बस यही आज है जो वास्तव में खड़ा है