ए ज़िन्दगी
ज़िंदगी तुझ से न कम मिला न ही ज़्यादा पाया खुशियाँ मिली तो गमों का भी दौर आया मिली दीवाली सी रोशनी तो कभी दिया तले अंधेरा पाया तूने जब दी तनहाई मुड़ के देखा तो साथ कारवाँ पाया क्यों करें शोक हम तेरी किसी बात का क्यों ज़ाया करें अभी तुझ पे जस्बात तू जो भी दे मज़ा तो हम पूरा लूटेंगे गिरें गर कभी तो फिर उठ खड़े होंगे इंतेज़ार है उस दिंन का जब होंगे तेरे सामने तेरी हर एक देन को "once more" कहेंगे तब तक किसी चीज़ से शिकवा है न किसी से मलाल तू जो भी दे मंज़ूर है गवारा है हर हाल
फुर्सत
ये फुर्सत क्यों बेवजह बदनाम है क्यों हर कोई यह कहता के उसको बहुत काम है इस तेज़ दौड़ती, बटे लम्हों में कटती ज़िन्दगी का, चलना ही क्यों नाम है कैसे रूकें, कब थामें, एक पल को भी न आराम है कब घिरे कब छटे ये बादल, आये गए जो मौसम सारे न किसी को सुध न ध्यान है पलक झपकते बोले और चले जो, अपना खून खुद से अनजान है ये फुर्सत क्यों बेवजह बदनाम है बस यही तो है जो अनमोल हो कर भी बेदाम है