• English Poetry

    Since You’ve Been Gone


    Since you’ve been gone
    Been trying each day
    To find the strength
    Pick up the pieces
    And somehow move on

    Days run into days
    Years begin to turn into years
    Yes time has tried to be a friend
    But the heartache won’t mend
    There’s no easy way

    I look around
    I see the world I’ve built
    The life I live
    There’s an emptiness
    Despite the happiness I found

    So much has changed for me
    Yet so much has not
    My first birthday had you carrying me in your arms
    And now my first one with you in my memory, my heart closer than you'll ever be

    Maybe it’s not going to change
    The way I feel
    Guess it’s meant to be
    The emptiness is you driving me
    It’s destiny even if it’s strange

    Since you’ve been gone
    Keep trying each day
    To make you my strength
    Make meaning of these pieces
    Put on a smile and brave on
  • English Poetry

    Drifting

    Sometimes you are struck
    By a feeling that overwhelms
    A strange discomforting sense
    Of a total lack of control
    You are drifting
    
    The waters are calm
    You sense no turbulence
    Just an inexplicable fear
    Uneasy and unware
    You are still but sinking
    
    You seek happiness
    Peace and joy
    A good life
    You try maintain pace
    The ground beneath is shifting
    
    Get a grip
    You coax yourself
    Draw deep for strength
    Look around for motivation
    Believe there’s a silver lining
    
    Winds change direction
    Things fall into place
    You get dealt a good hand
    Hmmm you wonder if
    The tide is turning
    
    Green shoots around you
    Blue skies on the horizon
    You are in a better place
    It’s a new view
    Life has a new meaning
    
    The low felt really low
    Took away all you had
    You were tough though
    Took a couple on the chin
    The real deal is not loosing
    
    The high it may not remain
    Troubles they may visit again
    But one thing is for sure
    It’s the tussle in between
    That makes life worth living
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    बीते लम्हे

    बीते लम्हे, लोग और दिन
    लौट के वापस आते नहीं हैं
    गुज़रते कारवाँ के हैं ये राही
    सिर्फ़ अपने निशान छोड़ जाते हैं

    टेढ़े मेढ़े हैं जीवन के रास्ते मगर
    कई बार उसी मोड़ से जाते हैं
    चलते क़दम जाने अनजाने
    किसी मंज़र पे थम जाते हैं

    यादों को कभी मलहम बना
    तो कभी सदा कह के बुला लाते हैं
    फिर एक बार कुछ पल के लिए ही सही
    याद किसी के होने का एहसास दिलाती हैं

    यादों के कारवाँ चलते हैं जब
    निशानियों पे रास्ते फिर बन जाते हैं
    बीते लम्हे, लोग और दिन
    सब लौट आते हैं
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    सहर

    क्या एहम है जीने में
    हर ज़िन्दगी जब साथ मौत लाती है
    क्यों ढूँढे अलग अलग रास्ते
    जब मंज़िल एक बुलाती है
    
    क्या है ऐसा ख़ीज़ा में
    जो बहारों की याद सताती है
    क्यों गर्म ख़ुश्क हवाएँ
    भूली कोई ख़ुशबू साथ लातीं है
    
    भला क्या मर्ज़ है आख़िर रिश्तों का
    के हाज़िर को अनदेखा करते हैं
    जो बिछड़ गए कोई गर चले गए
    उनके लिए अश्क़ बहाते हैं
    
    हर आग़ाज़ और अंजाम के बीच
    एक कहानी आती है
    जो लफ़्ज़ों में बयान होती नहीं
    फ़क़त देखी दिखाई जाती है
    
    क्या हासिल है ग़म भरने में
    ये जान कर के ख़ुशी आती जाती है
    क्यों किसी शब के अँधेरे को ज़ाया कहें
    गुज़र के जब वो रौशन सहर लाती है 
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    एक ऐसा यार

    Art : Rachel Coles
    न पूछे क्यों
    न सोचे कभी दो बार
    लड़ जाए भिड़ जाए
    सुन के बस एक पुकार
    रब करे सबको मिले
    बस एक ऐसा यार
    खाए जो बड़ी क़समें
    उठाए जो नख़रे हज़ार
    निभाए सारी वो रस्में
    झेलकर भी सितम करे प्यार
    दुआ है संग सदा मिले
    बस एक ऐसा यार
    पूरी करे जो तलब
    कश हो या जाम मिले तैयार
    महूरत मान ले फ़रमाइश को
    न दिन देखे न देखे वार
    जब मिले तेरे सा मिले
    बस एक ऐसा यार
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    साया

    लिखने की चाहत तो बहुत है
    जाने क्यों कलम साथ नहीं
    जज़्बात सियाही से लिखे लफ़्ज़ नहीं
    मेरे बेलगाम बहते अश्क़ बयां कर रहें हैं
    
    अभी तो बैठे थे फ़िलहाल ही लगता है
    पलट गयी दुनिया कैसे ये मालूम नहीं
    जाने वाले की आहट भी सुनी नहीं
    सर पे से अचानक साया हठ गया है
    
    वो जो ज़ुबान पे आ के लौट गयी वो बातें बाक़ी है
    अब कहने का मौक़ा कभी मिलेगा नहीं
    हाय वक़्त रहते क्यों कहा नहीं
    कुछ दिन से ये सोच सताती है
    
    अल्फ़ाज़ बुनता हूँ मगर उधड़ जाते हैं
    ख़यालों जितना उन में वज़न नहीं
    डर भी है ये विरासत कहीं खोए नहीं
    मगर यक़ीन-ए-पासबाँ भी मज़बूत है
    
    लिखने की चाहत तो बहुत है
    जाने क्यों कलम साथ नहीं
    जज़्बात सियाही से लिखे लफ़्ज़ नहीं
    मेरे बेलगाम बहते अश्क़ बयां कर रहें हैं
    
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    पहल

    खुद से कुछ कम नाराज़ रहने लगा हूँ
     
    ऐब तो खूब गिन चुका
    खूबियाँ अपनी अब गिनने लगा हूँ मैं
     
    आजकल एक नयी सी धुन में लगा हूँ
    अपने ख्यालों को अल्फाजों में बुनने लगा हूँ मैं
     
    गैरों के नगमे गुनगुनाना छोड़ रहा हूँ
    अब बस अपने ही गीत लिखने चला हूँ मैं
    कुछ अपने से रंग तस्वीर में भरने लगा हूँ
    आम से अलग एक पहचान बनाने चला हूँ मैं
     
    अंजाम से बेफिक्र एक पहल करने चला हूँ
    अपने अन्दर की आवाज़ को ही अपना खुदा मानने लगा हूँ मैं
     
    खुद से कुछ कम नाराज़ रहने लगा हूँ
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    परिचय

    आज धूल चटी किताबों के बीच
     ज़िन्दगी का एक भूला पन्ना मिल गया
     धुँधले से लफ़्ज़ों के बीच
     पहचाना सा एक चहरा खिल गया
     अलफ़ाज़ पुराने यकायक जाग उठे
     मानो सार नया  कोई मिल गया
     दो पंक्तियों के चंद लमहों में
     एक पूरा का पूरा युग बीत गया
     आज धूल चटी किताबों के बीच
     मुझ को मैं ही मिल गया
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    ए ज़िन्दगी

    ज़िंदगी तुझ से न कम मिला न ही ज़्यादा पाया
    खुशियाँ मिली तो गमों का भी दौर आया
    मिली दीवाली सी रोशनी तो कभी दिया तले अंधेरा पाया
    तूने जब दी तनहाई मुड़ के देखा तो साथ कारवाँ पाया
    क्यों करें शोक हम तेरी किसी बात का
    क्यों ज़ाया करें अभी तुझ पे जस्बात
    तू जो भी दे मज़ा तो हम पूरा लूटेंगे
    गिरें गर कभी तो फिर उठ खड़े होंगे
    इंतेज़ार है उस दिंन का जब होंगे तेरे सामने
    तेरी हर एक देन को "once more" कहेंगे
    तब तक किसी चीज़ से शिकवा है न किसी से मलाल
    तू जो भी दे मंज़ूर है गवारा है हर हाल
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    फुर्सत

    ये फुर्सत क्यों बेवजह बदनाम है
    क्यों हर कोई यह कहता के उसको बहुत काम है
    
    इस तेज़ दौड़ती, बटे लम्हों में कटती ज़िन्दगी का, चलना ही क्यों नाम है
    कैसे रूकें, कब थामें, एक पल को भी न आराम है
    
    कब घिरे कब छटे ये बादल, आये गए जो मौसम सारे न किसी को सुध न ध्यान है
    पलक झपकते बोले और चले जो, अपना खून खुद से अनजान है
    
    ये फुर्सत क्यों बेवजह बदनाम है
    बस यही तो है जो अनमोल हो कर भी बेदाम है