• English Poetry

    Forever Indebted

    For caressing my curiosity beyond a tome
    For creating a home away from home
    For helping me get up after a fall
    For pushing me to give it my all
    For encouraging thought and creativity 
    For ignoring acts of teenage proclivity 
    For the angry glare and timely reprimand
    For simply saying “I understand”
    For making sure I became the best version of me
    For I couldn’t have made it this far had you just let me be
  • English Poetry

    Mother

    I walk alone
    Trying to find a way back home
    I look for a landmark
    Yet I keep coming back to the start
    I am tired and strained
    The sights and sounds seem unfamiliar
    The shadows grow longer
    I am scared and frightened
    I see a light shining in the distance
    I open my eyes
    Yes, I am home
    A loving touch
    A hand runs its fingers through my hair
    It's you mother
    I am comforted by your tender loving care
  • English Poetry

    A Date with a Memory

    A Date with a Memory
    A Marked Calendar!
    How does one prepare
    To face impending despair
    What do you do
    When you know the blues are going to hit you
    You see the pages of calendar turn
    A date with a memory awaits
    Passing time hasn't yet healed the burns
    Of a day when you were hit by a cruel twist of fate
    You try to move on
    Carefully treading down memory lane
    Past flashing images of a loved one gone
    The heart laments, aches and pains
    The day passes punctuated with awkward silences
    With the mind and heart attempting conversation
    What one says the other refuses
    Each year its the same situation
    Someday the mind hopes the heart shall learn
    To look back and remember
    The years of pure joy 
    And not just one bad day in September
  • English Poetry

    The Perfect Circle

    Circle of Friends by Susan Vannelli used for The Perfect Circle a poem by Sudham
    Art: Circle of Friends by Susan Vannelli
    I pen these lines to say ‘Thank You’ on what my little one says is Friendship Day
    There are indeed things to express and today’s as good as any other day
    Always maintained and truly believe that friends are the family one can choose
    Our most potent weapons always ready at our behest to convince, corrupt or confuse

    To all the friends who befriended me or I ever made
    At work, the university, the neighbourhood or first grade
    Close or distant so many of you have had a role to play
    In shaping me into the person I am from the proverbial clay

    To those who really don’t fit the classical definition of a friend
    The ones that are always around to support with hand to lend
    The parents, siblings, the teachers at school and yes even bosses
    The hands of God, the guardian angels, the mystery sauces

    To those with whom I stayed the course and they’re but a few
    You have a big heart, I know what it takes for being there, for staying true
    Then there are those that distances and time pushed away
    Mere pauses in our friendship for whenever we meet we just press play

    To the handful and hopefully all of you know who you are
    My rocks of Gibraltars, my partners in crime, my guiding stars
    For a man of words I search for ones that’ll convey what I really want to say
    I live and breathe metaphorically and truly it’s because of you I’m here today
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    तू है…के नहीं?

    He and I. Used for Tu Hai Ke Nahin a poem by Sudham
    He and I
    आज एक याद फ़िर ताज़ा हो चली है
    संग वो अपने सौ बातें
    और हज़ार एहसास ले चली है
    
    तोड़ वक़्त के तैखाने की ज़ंजीरें
    खुली आँखों में टंग गयी
    बीते पलों में बसी तस्वीरें
    
    सुनाई साफ़ देती है हर बात
    अफ़सानों का ज़ायका
    और निखर गया है सालों के साथ
    
    दर्द और ख़ुशी का अजब ये मेल है
    संग हो तुम फिर भी नहीं हो
    बस यही क़िस्मत का खेल है
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    फ़िलहाल

    Filhaal -Abstract  used for a poem of the same name by Sudham.
    कुछ दिनों से ऐसा लग रहा है
     के ज़िंदगी के माइने बदल गए
     इतना बदला हुआ मेरा अक्स है
     लगता है जैसे आइने बदल गए
    
     अभी तो कारवाँ साथ था ज़िंदगी का
     जाने किस मोड़ रास्ते जुदा हो गए
     अब तो साथ है सिर्फ़ अपने साये का 
     जो थे सर पर कभी वो अचानक उठ गए
    
     यूँ लगता जैसे किसी नई दौड़ का हिस्सा हूँ
     किरदार कुछ नए कुछ जाने पहचाने रह गए
     शुरूवात वही पर अंत नहीं  एक नया सा क़िस्सा हूँ
     जोश भी है जुंबिश भी जाने क्यूँ मगर पैर थम गए
    
     एहसास एक भारी बोझ का है सर और काँधे पे भी
     पास दिखाई देते थे जो किनारे कभी वो छिप गए
     प्रबल धारा में अब नाव भी मैं हूँ और नाविक भी
     देखें अब आगे क्या हो अंजाम डूबे या तर गए
    
     इतने बदले हम से उसके अरमान हैं
     लगता है ज़िंदगी के पैमाने बदल गए
     कुछ दिनों से ऐसा लग रहा है
     के ज़िंदगी के माइने बदल गए
    
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    मास्क पहन लो ना यार…

    Wear your mask!
    अब तो जवान और बच्चे भी होने लगे बीमार
    हद की भी हद हो गयी है पार

    किस बात का है तुमको इंतेज़ार
    मास्क पहन लो ना यार

    देश शहर क़स्बा मोहल्ला घर पे भी हुआ वार
    धज्जियाँ उड़ गयी, व्यवस्था पड़ी है तार तार

    छोड़ो क्यों ज़िद पे अड़े हो बेकार
    मास्क पहन लो ना यार

    उनसे पूछो जिनके अपने बह गए, तर न सके पार
    उठ गए सर से साये, बिखर गए कई घर बार

    क्यूँ आफ़त को दावत देते हो बार बार
    मास्क पहन लो ना यार

    मिलेंगे मौक़े आते जाते भी रहेंगे त्योहार
    ज़िंदगी रहेगी तो फिर मिलेंगी बहार

    बहस छोड़ो सड़क पे चलो या by car
    मास्क पहन लो ना यार

    खुद तुम मानो संग मनाओ तुम यार तीन चार
    अपने और अपनों के लिए करो ये आदत स्वीकार

    मान जाओ ना, हो जाओ तैयार
    मास्क पहन लो ना यार
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    किसे पता था

     किसे पता था
     के एक दिन ये चेहरा
     मुझ से यूँ जुड़ जायेगा
     अपरिचित अनजान वो
     मेरी पहचान बन जायेगा
     किसे पता था
     ये मौक़ा भी आयेगा
     परिचय कोई कारवायेगा
     पहचाने उस चेहरे को
     एक नाम वो दिलायेगा
     किसे पता था
     जान पहचान एक दिन
     दोस्ती भी बन जायेगी
     पटरियाँ साथ साथ चलते
     इतनी दूर आ जायेंगी
     किसे पता था
     रेल के उन डिब्बों में बैठ
     आते जाते बतियाते
     दिलों की डोर
     यूँ बंध जायेगी
     किसे पता था
     सात क़दम चल
     सात वचन ले कर
     हमसफ़र जीवन के
     हम दोनों बन जायेंगे
     किसे पता था 
    
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    भारत गणतंत्र

    मेरे देश का परचम आज लहरा तो रहा है 
     लेकिन इर्द गिर्द घना कोहरा सा छा रहा है 
    
    देश की हवाएं कुछ बदली सी हैं 
     कभी गर्म कभी सर्द तो कभी सहमी सी हैं 
    
     यूँ तो विश्व व्यवस्था में छोटी पर मेरा भारत जगमगा रहा है 
     पर कहीं न कहीं सबका साथ सबका विकास के पथ पर डगमगा रहा है 
     
    स्वेछा से खान पान और मनोरंजन का अधिकार कहीं ग़ुम हो गया है 
     अब तो बच्चों का पाठशाला आना जाना भी खतरों से भरा है 
    
     सहनशीलता मात्र एक विचार और चर्चा का विषय बन चला है 
     गल्ली नुक्कड़ पर आज राष्ट्रवाद एक झंडे के नाम पर बिक रहा है 
     
    क्या मुठ्ठी भर लोगों की ज़िद को लिए मेरा देश अड़ा है 
     क्यों हो की एक भी नागरिक आज इस गणतंत्र में लाचार खड़ा है 
     
    मेरे देश का परचम आज लहरा तो रहा है 
     लेकिन इर्द गिर्द घना कोहरा सा छा रहा है
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    ये जो देश है मेरा…

    कोई अच्छी खबर सुने तो मानो मुद्दत गुज़र गयी है
     लगता है सुर्खियां सुनाने वालों की तबियत कुछ बदल गयी है
    
     वहशियों और बुद्धीजीवियों में आजकल कुछ फरक दिखाई नहीं देता
     कोई इज़्ज़त लूट रहा है तो कोई इज़्ज़त लौटा रहा है
    
     बेवकूफियों को अनदेखा करने का रिवाज़ नामालूम कहाँ चला गया
     आलम ये है के समझदारों के घरों में बेवकूफों के नाम के क़सीदे पढ़े जा रहे हैं
    
     तालाब को गन्दा करने वाले लोग चंद ही हुआ करते हैं
     भले-बुरे, ज़रूरी और फज़ूल की समझ रखनेवाले को ही अकल्मन्द कहा करते हैं
    
     मौके के तवे पर खूब रोटियां सेंकी जा रहीं हैं
     कल के मशहूरों के अचानक उसूल जाग उठें हैं
    
     देश किसका है और किसका ख़ुदा
     ईमान और वतनपरस्ती के आज लोग पैमाने जाँच रहे हैं
    
     मैं तो अधना सा कवि हूँ बात मुझे सिर्फ इतनी सी कहनी है
     क्यों न कागज़ पे उतारें लफ़्ज़ों में बहाएँ  सियाही जितनी भी बहानी है
    
     फर्क जितने हों चाहे जम्हूरियत को हम पहले रखें
     आवाम की ताक़त पे भरोसा कायम रखें
    
     किये का सिला आज नहीं तो कल सब को मिलेगा
     सम्मान लौटाने से रोटी कपडा या माकन किसी को न मिलेगा