Forever Indebted
For caressing my curiosity beyond a tome For creating a home away from home For helping me get up after a fall For pushing me to give it my all For encouraging thought and creativity For ignoring acts of teenage proclivity For the angry glare and timely reprimand For simply saying “I understand” For making sure I became the best version of me For I couldn’t have made it this far had you just let me be
Mother
I walk alone Trying to find a way back home I look for a landmark Yet I keep coming back to the start I am tired and strained The sights and sounds seem unfamiliar The shadows grow longer I am scared and frightened I see a light shining in the distance I open my eyes Yes, I am home A loving touch A hand runs its fingers through my hair It's you mother I am comforted by your tender loving care
A Date with a Memory
How does one prepare To face impending despair What do you do When you know the blues are going to hit you You see the pages of calendar turn A date with a memory awaits Passing time hasn't yet healed the burns Of a day when you were hit by a cruel twist of fate You try to move on Carefully treading down memory lane Past flashing images of a loved one gone The heart laments, aches and pains The day passes punctuated with awkward silences With the mind and heart attempting conversation What one says the other refuses Each year its the same situation Someday the mind hopes the heart shall learn To look back and remember The years of pure joy And not just one bad day in September
The Perfect Circle
I pen these lines to say ‘Thank You’ on what my little one says is Friendship Day
There are indeed things to express and today’s as good as any other day
Always maintained and truly believe that friends are the family one can choose
Our most potent weapons always ready at our behest to convince, corrupt or confuse
To all the friends who befriended me or I ever made
At work, the university, the neighbourhood or first grade
Close or distant so many of you have had a role to play
In shaping me into the person I am from the proverbial clay
To those who really don’t fit the classical definition of a friend
The ones that are always around to support with hand to lend
The parents, siblings, the teachers at school and yes even bosses
The hands of God, the guardian angels, the mystery sauces
To those with whom I stayed the course and they’re but a few
You have a big heart, I know what it takes for being there, for staying true
Then there are those that distances and time pushed away
Mere pauses in our friendship for whenever we meet we just press play
To the handful and hopefully all of you know who you are
My rocks of Gibraltars, my partners in crime, my guiding stars
For a man of words I search for ones that’ll convey what I really want to say
I live and breathe metaphorically and truly it’s because of you I’m here todayतू है…के नहीं?
आज एक याद फ़िर ताज़ा हो चली है संग वो अपने सौ बातें और हज़ार एहसास ले चली है तोड़ वक़्त के तैखाने की ज़ंजीरें खुली आँखों में टंग गयी बीते पलों में बसी तस्वीरें सुनाई साफ़ देती है हर बात अफ़सानों का ज़ायका और निखर गया है सालों के साथ दर्द और ख़ुशी का अजब ये मेल है संग हो तुम फिर भी नहीं हो बस यही क़िस्मत का खेल है
फ़िलहाल
कुछ दिनों से ऐसा लग रहा है के ज़िंदगी के माइने बदल गए इतना बदला हुआ मेरा अक्स है लगता है जैसे आइने बदल गए अभी तो कारवाँ साथ था ज़िंदगी का जाने किस मोड़ रास्ते जुदा हो गए अब तो साथ है सिर्फ़ अपने साये का जो थे सर पर कभी वो अचानक उठ गए यूँ लगता जैसे किसी नई दौड़ का हिस्सा हूँ किरदार कुछ नए कुछ जाने पहचाने रह गए शुरूवात वही पर अंत नहीं एक नया सा क़िस्सा हूँ जोश भी है जुंबिश भी जाने क्यूँ मगर पैर थम गए एहसास एक भारी बोझ का है सर और काँधे पे भी पास दिखाई देते थे जो किनारे कभी वो छिप गए प्रबल धारा में अब नाव भी मैं हूँ और नाविक भी देखें अब आगे क्या हो अंजाम डूबे या तर गए इतने बदले हम से उसके अरमान हैं लगता है ज़िंदगी के पैमाने बदल गए कुछ दिनों से ऐसा लग रहा है के ज़िंदगी के माइने बदल गए
मास्क पहन लो ना यार…
अब तो जवान और बच्चे भी होने लगे बीमार
हद की भी हद हो गयी है पार
किस बात का है तुमको इंतेज़ार
मास्क पहन लो ना यार
देश शहर क़स्बा मोहल्ला घर पे भी हुआ वार
धज्जियाँ उड़ गयी, व्यवस्था पड़ी है तार तार
छोड़ो क्यों ज़िद पे अड़े हो बेकार
मास्क पहन लो ना यार
उनसे पूछो जिनके अपने बह गए, तर न सके पार
उठ गए सर से साये, बिखर गए कई घर बार
क्यूँ आफ़त को दावत देते हो बार बार
मास्क पहन लो ना यार
मिलेंगे मौक़े आते जाते भी रहेंगे त्योहार
ज़िंदगी रहेगी तो फिर मिलेंगी बहार
बहस छोड़ो सड़क पे चलो या by car
मास्क पहन लो ना यार
खुद तुम मानो संग मनाओ तुम यार तीन चार
अपने और अपनों के लिए करो ये आदत स्वीकार
मान जाओ ना, हो जाओ तैयार
मास्क पहन लो ना यारकिसे पता था
किसे पता था के एक दिन ये चेहरा मुझ से यूँ जुड़ जायेगा अपरिचित अनजान वो मेरी पहचान बन जायेगा किसे पता था ये मौक़ा भी आयेगा परिचय कोई कारवायेगा पहचाने उस चेहरे को एक नाम वो दिलायेगा किसे पता था जान पहचान एक दिन दोस्ती भी बन जायेगी पटरियाँ साथ साथ चलते इतनी दूर आ जायेंगी किसे पता था रेल के उन डिब्बों में बैठ आते जाते बतियाते दिलों की डोर यूँ बंध जायेगी किसे पता था सात क़दम चल सात वचन ले कर हमसफ़र जीवन के हम दोनों बन जायेंगे किसे पता था
भारत गणतंत्र
मेरे देश का परचम आज लहरा तो रहा है लेकिन इर्द गिर्द घना कोहरा सा छा रहा है देश की हवाएं कुछ बदली सी हैं कभी गर्म कभी सर्द तो कभी सहमी सी हैं यूँ तो विश्व व्यवस्था में छोटी पर मेरा भारत जगमगा रहा है पर कहीं न कहीं सबका साथ सबका विकास के पथ पर डगमगा रहा है स्वेछा से खान पान और मनोरंजन का अधिकार कहीं ग़ुम हो गया है अब तो बच्चों का पाठशाला आना जाना भी खतरों से भरा है सहनशीलता मात्र एक विचार और चर्चा का विषय बन चला है गल्ली नुक्कड़ पर आज राष्ट्रवाद एक झंडे के नाम पर बिक रहा है क्या मुठ्ठी भर लोगों की ज़िद को लिए मेरा देश अड़ा है क्यों हो की एक भी नागरिक आज इस गणतंत्र में लाचार खड़ा है मेरे देश का परचम आज लहरा तो रहा है लेकिन इर्द गिर्द घना कोहरा सा छा रहा है
ये जो देश है मेरा…
कोई अच्छी खबर सुने तो मानो मुद्दत गुज़र गयी है लगता है सुर्खियां सुनाने वालों की तबियत कुछ बदल गयी है वहशियों और बुद्धीजीवियों में आजकल कुछ फरक दिखाई नहीं देता कोई इज़्ज़त लूट रहा है तो कोई इज़्ज़त लौटा रहा है बेवकूफियों को अनदेखा करने का रिवाज़ नामालूम कहाँ चला गया आलम ये है के समझदारों के घरों में बेवकूफों के नाम के क़सीदे पढ़े जा रहे हैं तालाब को गन्दा करने वाले लोग चंद ही हुआ करते हैं भले-बुरे, ज़रूरी और फज़ूल की समझ रखनेवाले को ही अकल्मन्द कहा करते हैं मौके के तवे पर खूब रोटियां सेंकी जा रहीं हैं कल के मशहूरों के अचानक उसूल जाग उठें हैं देश किसका है और किसका ख़ुदा ईमान और वतनपरस्ती के आज लोग पैमाने जाँच रहे हैं मैं तो अधना सा कवि हूँ बात मुझे सिर्फ इतनी सी कहनी है क्यों न कागज़ पे उतारें लफ़्ज़ों में बहाएँ सियाही जितनी भी बहानी है फर्क जितने हों चाहे जम्हूरियत को हम पहले रखें आवाम की ताक़त पे भरोसा कायम रखें किये का सिला आज नहीं तो कल सब को मिलेगा सम्मान लौटाने से रोटी कपडा या माकन किसी को न मिलेगा