Hindi Poetry | कविताएँ

पढ़ें सुधाम द्वारा लिखी कविताएँ। सुधाम के लेखन में श्रृंगार, करुणा, अधभुत आदि रसों का स्वाद सम्मिलित है।

  • Hindi Poetry | कविताएँ

    नया साल

    कल की बीती को भुला दो
     अपने रूठों को आज मना लो
     इस बरस दिन तो फिर उतने ही होंगे
     मौक़े शायद फिर उतने न और मिलेंगे
     चलेगा जब नया साल
     दिन हफ़्ते महीनों की चाल
     कुछ पहचाने तो नए कुछ मिलेंगे रिश्तों के रास्ते
     लय होगी उनकी कभी मद्धम कभी तेज़ कभी आहिस्ते
     ये गोला तो सूरज की परिक्रमा फिर करेगा
     सर्द गरम और वर्षा का दौर यूँ चिरकाल चलेगा
     हर बदलता साल अपने संग रिश्तों का जश्न है लाता
     बिन साथियों के मने तो कहाँ कोई मज़ा है आता
     अनमोल हैं रिश्ते बस उन्ही को रखना है सम्भाल के
     कौन जाने साथ कितनों का और कितना और मिलेगा
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    दोस्ती का हिसाब

    एक रोज़ बस यूँ ही दोस्ती का हिसाब करने बैठे
     मस्ती, समझदारी, वफ़ादारी और बेवक़ूफ़ी के नाम हिस्से बटे
     कुछ दोस्त इधर बटे और कुछ यार उधर बटे
     कुछ तो ऐसे थे जो सोच से ही छटे
     एक रोज़ जब यूँ ही दोस्ती का हिसाब करने बैठे
     सिर्फ़ मस्ती करने वाले दोस्तों की कसर न दिखी
     बेवक़ूफ़ियों और बेवक़ूफ़ों की गिनती भी कम न थी
     जब आढ़े वक़्त ने आज़मा के देखा तो एक-आध वफ़ादार भी मिले
     एक रोज़ जब यूँ ही दोस्ती का हिसाब करने बैठे
     हमने जाना की कुछ दोस्त ऐसे भी थे
     जो किसी भी खेमे में न बट सके
     कुछ नायाब जो दोस्त से ज़्यादा थे, कुछ वो जो दोस्ती के ही क़ाबिल न थे
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    मौक़ा

    क्यों परेशान से दिखते हैं लोग हर तरफ़
     आख़िर है क्या इस बेचैनी का सबब
     इतनी दुनिया में दुनिया से नाराज़गी क्यों है भला
     छोटी छोटी बातों पे क्यों ख़ून उबलने है चला
     तेरे मेरे का फ़ासला तो पहले भी कम न था
     मगर इतनी नफ़रत ऐसा रंज-ओ-ग़म न था
     कुछ तो होगा इलाज कोई तो होगी दवा
     मिल के फूकेंगे तो शायद चलेगी बदलेगी हवा
     कहाँ इतिहास में सियासतदारों ने अमन की राह चुनी है
     एहतराम और मोहब्बत के धागों ने इस देश की चादर बुनी है
     निकलेगी आवाम घर से तो कुछ तो हालात बदल पायेंगे
     वरना यूँ बोलते बोलते तो फिर से पाँच साल बीत जायेंगे
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    भेलपूरी वाला

    एक दिन की बात है
     कुछ तीस बत्तीस बरस पहले की
     भारी सा बैग लटकाए स्कूल के बाद
     घर अपने मैं पैदल जा रहा था
     खुली स्लीव ढीली टाई
     राह पड़े किसी कंकर को 
     अपने काले जूते का निशाना बना
     धुन अपनी में चला जा रहा था
     यकायक पीछे एक साइकल की घंटी बजी
     मटमैला कुर्ता पहने एक सज्जन सवार था
     जानी पहचानी सी सूरत थी उसकी 
     आवाज़ में उसकी अनजाना सा प्यार था
     “बैठो, मैं छोड़ देता हूँ बेटा” बोला वो मुस्कुराते
     मेरी हिचक को भी वो भाँप रहा था
     “तुमने पहचाना नहीं मुझे लगता है 
     लेकिन तुम को मैं हमेशा रखूँगा याद”
     सवाल मेरे चेहरे पे पढ़ के वो बोला
     “पहले ग्राहक थे तुम मेरे
     जिस दिन रेडी लगायी थी मैंने”
     ये सुन याद और स्वाद दोनों लौट आए
     सालों तलक जब कभी भी बाज़ार जाता
     उसकी आँखों में वही प्यार नज़र आता 
     शायद वही मिला था उसकी भेलपूरी में 
     चाव से हमेशा जिसे मैं था खाता
     सुना अब वो इस दुनिया में नहीं है 
     याद कर उसको आँखों में नमी है 
     कहता था सब को हमेशा कहूँगा
     दुनिया की सबसे अच्छी भेलपूरी वही है
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    एक ऐसा यार

    Art: Rachel Coles
    न पूछे क्यों
     न सोचे कभी दो बार
     लड़ जाए भिड़ जाए
     सुन के बस एक पुकार
     रब करे सबको मिले
     बस एक ऐसा यार
     खाए जो बड़ी क़समें
     उठाए जो नख़रे हज़ार
     निभाए सारी वो रस्में
     झेलकर भी सितम करे प्यार
     दुआ है संग सदा मिले
     बस एक ऐसा यार
     पूरी करे जो तलब
     कश हो या जाम मिले तैयार
     महूरत मान ले फ़रमाइश को
     न दिन देखे न देखे वार
     जब मिले तेरे सा मिले
     बस एक ऐसा यार
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    साया

    Image may contain: tree, outdoor and nature, text that says "साया सुधाम २०२०"
    लिखने की चाहत तो बहुत है
    जाने क्यों कलम साथ नहीं
    जज़्बात सियाही से लिखे लफ़्ज़ नहीं
    मेरे बेलगाम बहते अश्क़ बयां कर रहें हैं
    
    अभी तो बैठे थे फ़िलहाल ही लगता है
    पलट गयी दुनिया कैसे ये मालूम नहीं
    जाने वाले की आहट भी सुनी नहीं
    सर पे से अचानक साया हठ गया है
    
    वो जो ज़ुबान पे आ के लौट गयी वो बातें बाक़ी है
    अब कहने का मौक़ा कभी मिलेगा नहीं
    हाय वक़्त रहते क्यों कहा नहीं
    कुछ दिन से ये सोच सताती है
    
    अल्फ़ाज़ बुनता हूँ मगर उधड़ जाते हैं
    ख़यालों जितना उन में वज़न नहीं
    डर भी है ये विरासत कहीं खोए नहीं
    मगर यक़ीन-ए-पासबाँ भी मज़बूत है
    
    लिखने की चाहत तो बहुत है
    जाने क्यों कलम साथ नहीं
    जज़्बात सियाही से लिखे लफ़्ज़ नहीं
    मेरे बेलगाम बहते अश्क़ बयां कर रहें हैं
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    रिश्ता-ए-उम्मीद

    उम्र भर निभे ऐसी ही दोस्ती हो
     कहाँ और किस किताब में लिखा है
     गरज़ और ग़ुरूर के बाटों के बीच
     हर रिश्ता कभी न कभी पिसा है
    
     कुछ कही तो अक्सर अनकही
     आदतों हरकतों का भी असर बड़ा है
     कहते एक दूसरे को लोग कम मगर
     ख़ुशहाल रिश्ते के आढ़े अरमान खड़ा है
    
     बुरी आदत है ये उम्मीद रखने की
     कमबख़्त कौन कभी इस पे खरा उतरा है
     आइने में खड़े शक्स को भी ज़रा टटोलो
     कौन सा वादा उसने भी कभी पूरा किया है
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    विश्वास का दीया

    खुली हवा है वो आज़ादी की
     शीतल करे जो जब मध्धम चले
    एक ओर जो हो हावी तो बने आँधी
     कैसे तूफ़ानों में कोई दीया जले
    
     अलगाव की चिंगारी कहीं दामन ना लगे
     मिल के बढ़ने के लिए दिल भी बड़े रखने होंगे
     दूर अभी हैं वो मंज़िलें जहाँ ख़ुशहाली मिले
     कटे तने से चलने से कैसे ये रास्ते तय होंगे
    
     इरादे नेक वही जो अमल में आएँ
     कथनी और करनी को अब मिलाना है
     तेरे मेरे के ये फ़ासले चलो मिल मिटाएँ
     विश्वास लेना देना नहीं कमाना है
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    फिर मिलते हैं

    कोई तो है जहाँ
     जिधर तू आबाद है
     इधर तो तेरी हँसी
     तेरी बातें तेरी याद है
     मिलते होंगे वहाँ पर भी
     सालगिरह के मुबारक तराने
     अपने भी मिल गए होंगे
     दोस्त कुछ नए पुराने
     जितनी हमको है आती
     तुम्हें भी तो आती होगी
     फ़िलहाल तो इतना यक़ीन है
     तुम से फिर मुलाक़ात होगी
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    कश्मीर

    रौनक़ लगाते रौशन गली गलियारे
     सजते थे सूखे चिनार के पत्ते सड़क किनारे
    
     बर्फ़ की सफ़ेद चादर ओढ़े होते सर्द सवेरे
     फ़िरन तले गरमी देते कांगड़ी के नर्म अंगारे
    
     सिराज बाग़ में सजे लाखों फूल वो प्यारे
     दल पे हौले सरकते छोटे बड़े सुंदर शिकारे
    
     हरी हरी वादी के यादगार लुभावने नज़ारे
     सैर सपाटे शांत बहते जहलम किनारे
    
     हुस्न जिसका हर मौसम अलग निखारे
     यूँ ही नहीं कहते थे इसे लोग जन्नत सारे
    
     फिर मौसम बदला गूँजने लगे नारे
     बिखरे अचानक ख़्वाब जो संवारे
    
     मुट्ठी भर की ज़िद ने हज़ारों मारे
     खेल खेलने लगे सियासतदाँ हमारे
    
     पहचान हमारी जो है हमें झमूरियत पुकारे
     ज़रूरी है के जब देश जीते कश्मीरियत ना हारे