Hindi Poetry | कविताएँ
पढ़ें सुधाम द्वारा लिखी कविताएँ। सुधाम के लेखन में श्रृंगार, करुणा, अधभुत आदि रसों का स्वाद सम्मिलित है।
एक शहर था…
एक शहर था प्यारा फ़ूलों का महका करती थी हर गली जिसकी दिल दरिया हुआ करता था उसके लोगों का समाते थे जिस में विभिन्न जाति प्रांत के लोग सभी फिरते थे जब गली बाज़ारों में अनेकों बोलियां श्रवण में आती थी पोंगल दशहरा हब्बा ईद त्योहारों पर गलियां एक सी सजती थी फिर एक दिन सब कुछ बदल गया सिक्का मतलबपरस्ती का मानो ऐसा चल गया काम छोड़कर नामों मे पहचान हर किसी की ढूंढी गई पानी ने आग लगा डाली पहले जो बुझाया करती थी जल रहा वो शहर फूलों का दहक रही हैं गलियां अब उसकी तांडव हिंसा का चल रहा कौन सुन रहा गुहार उसकी
तू है
मेरी आदतों में मेरी ज़रूरतों में मेरे दर्द में मेरी ख़ुशियों में मेरी शामों में मेरी हर सुबह में हर रोज़ के हर पल में मेरे होने में और न होने में हर सूरत हर हाल में बढ़ती थमती साँसों में गुज़रते वक़्त की चाल में मंदिर गिरजा की घंटियों में शबद में आयतों में लक्ष्मी दुर्गा सरस्वती में बेटी माँ सखी और संगिनी में तू है तो हूँ मैं तू है तो हूँ मैं
आज… कल…
मेरा आज जाने क्यों मेरे कल से रूठा है पल पल कुढ़ता है उसे सोच के जो बीता है नाराज़गी इस क़दर है की कहता है कल झूठा है कैसे बतलाऊँ की हर आज बीते कल में भी जीता है सपने तो बहुत देखें थे आज के लिए मेरे कल ने अरमान भी बड़े बड़े सजाए थे मुस्तकबिल के कितनी शिद्दत भरी थी कल की हर एक दुआ में महनत भी शामिल थी जिसके की कल काबिल थे पर मेरे आज को तो अपनी हक़ीक़त से मतलब है जो सच हुआ, हो पाया, बस वही तो आज और अब है हसरतें लेकिन मेरे आज की भी कम नहीं, बहुत हैं कुछ ज़्यादा, कुछ बेहतर, कुछ बढ़कर मेरे आज की तलब है क्यों मेरा आज बीते अपने ही कल को नहीं पहचानता क्यों वो अपना समझ के मेरे कल का हाथ नहीं थामता आनेवाली सुबह में खुद गुल हो जाएगा क्यों नहीं मानता वो भी किसी आज का कल होगा क्या ये नहीं जानता भला सोचो सब जान के भी यूँ अनजान बना क्यों मेरा आज पड़ा है किस लिए आज ज़िद्द पकड़े अपनी बात पे ही ऐसे अड़ा है पहला तो नहीं है शायद मेरा ये आज जो अपने कल से लड़ा है एक बीत गया, एक आया नहीं, बस यही आज है जो वास्तव में खड़ा है
आशाएँ
लो आ गया जन्मदिन, आ गयी फिर एक सालगिरह हम इस गोले संग एक सौर्य परिक्रमा और कर आए कुछ साल पहले तक तो थे काले घने अब तो दाढ़ी के बाल भी पकने को आए उम्मीदें जो बचपन ने जवानी से की थी कुछ भूल ही गए, कुछ सच हुईं, कुछ निभी न निभाए दौर तो अच्छे बुरे जैसे तैसे सारे ही बीत गये हासिल तो वो है जो दोस्त सदा संग पाए आशाएँ जीवन से आज भी हैं समय अब चाहे जितना हो ज़रूरी ये नहीं के सारी पूर्ण हों, बस कोई कोशिश अधूरी न रह जाए
अक्स
याद है क्या तुमको वो ज़माना College के lecture में न जाना बना के कोई भी अजीब सा बहाना नज़दीक के cinema पे overtime लगाना कितनी बेफ़िक्री से जिया करते थे हम यारी दोस्ती इश्क़ मोहब्बत का भरते थे दम उम्मीदें थी मुस्तकबिल से और माज़ी से गिले कम मज़बूती से पड़ा करते थे ज़मीन पे कदम चलो उसी भूले खोए खुद को ढूँदतें हैं एक साँस इस दौड़ती ज़िंदगी को रोक के लेतें हैं अपने जवान अक्स को एक मौक़ा और देतें हैं आने वाले हर लम्हे से ख़ुशी को घोट के पीतें हैं
अब तक त्रेपन
गर यूँ अचानक छोड़ न देती साथ तो आज तुम त्रेपन की होती न कटी होती तुम से ये जो डोर तो कहाँ बातें हमारी कभी पूरी होतीं अनोखा बड़ा था तुम्हारा प्यार दिखाने का ढंग आज तुम्हारे वो थप्पड़ कितनी ख़ुशी से क़ुबूल होते काटे जो लम्हा लम्हा लड़ झगड़ तुम्हारे संग वैसे ही काश कुछ पल और मिल गए होते कभी दीदी, कभी सहेली, तो कभी माँ ऐसी सरलता से तुम रूप बदल लेती करती बदमाशी भी मेरी तरह कभी सज़ा भी तुम ही देती कितना मज़ा होता ज़िंदगी साथ जीने में राहें कटतीं जो तेरे संग, कितनी ये आसान होतीं न छिन गया होता जो हमसे तुम्हारा हाथ तो आज तुम त्रेपन की होती
बदलते रिश्ते
नाज़ुक होतें हैं ये सम्हाल कर इन्हें रखिएगा रेशम की डोरियाँ हैं ये गर तन जायें तो ज़ख़्म ही पाइएगा क्यों कर उलझते हैं रिश्ते सर्द शीशे से चटक जातें हैं रिश्ते जाने कब और कैसे बिखर जातें हैं यकायक अपने बेपरवाह हो जातें हैं कब बचा है कोई इस रंज-ओ-ग़म से किसे मिलती है दवा जियें जिस के दम पे यारी दोस्ती प्यार वफ़ा सब बेमानी है बिगड़ी भली जैसी हो बस चलानी है गाँठ पड़ी डोर तो कमज़ोर हो ही जाती है जुड़े आइने में दरार फिर भी नज़र आती है नाते रिश्तों की तो बस यही कहानी है जो हाथ लगा वो मिट्टी जो बह गया सो पानी है
निश्चय
दूर भले ही हो मंज़िल कदम कदम बढ़ाना है पथ में थक जाए जो साथी हर दम साथ निभाना है मिलजुल के चलेंगे हम हमें अपना कल आज बनाना है तूफ़ान भले ही हो प्रबल हमको तो दीप जलाना है उम्मीद से है हर दिल रोशन हमें ज्योत से ज्योत जगाना है मिलजुल के चलेंगे हम हमें अपना कल आज बनाना है कठिनाई चाहे हो अनेक जूझ के उन्हें हटाना है बादल चाहे हो घने बरस के तो छट जाना है मिलजुल के चलेंगे हम हमें अपना कल आज बनाना है थकना नहीं है रुकना नहीं है सपनों को सच कर के दिखाना है ख़ुशियों से भरा होगा हर घर भारत ने अब यही ठाना है मिलजुल के चलेंगे हम हमें अपना कल आज बनाना है
यक़ीन-ए-इश्क़
भुला पाओगे नहीं ये यक़ीन है मेरा जाओ फिर भी तुम्हें ये मौक़ा दिया कहाँ पाओगे ऐसा जैसा प्यार मेरा लो ये भी दुआ दे आज़ाद किया नहीं देंगे तुझे आवाज़ फिर न देखेंगे कभी फिर कूचा तेरा भुला देंगे सब कुछ तेरे ख़ातिर न याद कराएंगे कोई वादा तेरा दूर कहीं जा कर दुनिया से मेरी नया अपना जहाँ बसा लेना भूले से महक न आए मेरी काग़ज़ के फ़ूल सजा लेना गर याद फिर भी आए जो मेरी आँखें अपनी बंद कर लेना दिल तोड़ेंगे तेरा ख़्यालों में तेरी तुम बेवफ़ा मुझे फिर कह देना ये इल्ज़ाम भी अपने सर ले लेंगे बस तुम अपना सब्र रख लेना इश्क़ किया था माफ़ भी कर देंगे बस एक फ़ूल मेरी कब्र पर रख देना
दोस्ती की expiry date
क्या दोस्ती की भी expiry date होती है या उम्र भर साथ की guarantee होती है कल की नोंक झोंक आज जाने क्यों दिल दुखाने लगती है अचानक कोई भूली बात जबरन आ आ के सताने लगती है ना मालूम क्यों उम्मीदों का traffic one way हो जाता है कभी हँसते थे संग जिसके वो क्यों रूला रूला के जाता है जो चैन देता था कल आज वही चुराता है शायद हर दोस्ती में ये दौर भी आता है ख़िज़ा की रुत होगी ये कभी न कभी तो बदल जानी है बहार जब तलक फिर न आए तब तक हर हाल निभानी है कहाँ दोस्ती की कोई expiry date होती है यहाँ तो उम्र भर साथ की guarantee होती है