Hindi Poetry | कविताएँ

पढ़ें सुधाम द्वारा लिखी कविताएँ। सुधाम के लेखन में श्रृंगार, करुणा, अधभुत आदि रसों का स्वाद सम्मिलित है।

  • Hindi Poetry | कविताएँ

    उलफ़त

    उनकी उलफ़त का ये आलम है 
    के कोरे कागज़ पे भी ख़त पढ़ लिया करतें हैं

    ज़िन्दगी ऐसी गुलिस्तां बन गयी उनके प्यार में
    के कागज़  के फूलों में ख़ुशबू ढूँढ लिया करतें हैं

    हम तो फिर भी आशिक़ हैं 
    मानने वाले तो पत्थर में ख़ुदा को ढूँढ लिया करतें हैं

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    दिवाली

    इस बरस दिवाली के दियों संग
    कुछ ख़त भी जल गये 
    कुछ यादों की लौ कम हुई 
    कुछ रिश्ते बुझ गये 
    भूले बंधनों के चिरागों तले अँधेरे जो थे
    वो मिट गये
    बनके बाती जब जले वो रैन भर
    सारे शिकवे जो थे संग ख़ाक हो गये
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    यारी

    यादों के लम्बे पाँव अकसर 
     रात की चादर के बाहर पसर जातें हैं
    
     आवारा, बेखौफ़  ये हाल में  
     माज़ी को तलाशा लिया करतें हैं
    
     ख्वाबों में आने वाले  
     खुली आँखों में समाने लगतें हैं
    
     फिर एक बार बातों के सिलसिले 
     वक्त से बेपरवाह चलतें हैं
    
     वो नादान इश्क की दास्तानें  
     वो बेगरज़ यारियाँ
    
     समाँ कुछ अलग ही बँधता है  
     जब बिछडे दोस्त मिला करतें हैं
    
     यादों के लम्बे पाँव अकसर 
     रात की चादर के बाहर पसर जातें हैं
    
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    क्यों

    कितने आंसू अब और बहेंगे
     कितने ज़ुल्म यूँ और सहेंगे
     
    वक़्त का एक लम्हा तो
     इस ख़ौफ से सहमा होगा
     
    ऐसी वहशत को इबादत समझे जो
     शायद ही कोई ख़ुदा होगा
     
    कितने आंसू अब और बहेंगे
     कितने ज़ुल्म यूँ और सहेंगे
    
     ऐसे ज़ख्मों का मलहम कहीं तो मिलता होगा
     कहीं किसी सीने में तो दिल धड़कता होगा
    
     अब न आंसूं और बहे ये
     अब न ज़ुल्म यूँ और सहें
    
     हम सब को अब कुछ करना होगा
     सब से पहले ख़ुद को  फिर ऐसी ख़ुदाई को बदलना होगा
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    ये जो है ज़िन्दगी…

    आजकल कुछ बदल सी गयी है ज़िन्दगी
     चलती तो है मगर कुछ थम सी गयी है ज़िन्दगी
     मानो मुट्ठी में सिमट ही गयी है ज़िन्दगी
     साढ़े पांच इंच के स्क्रीन में कट रही है ज़िन्दगी
    
     इंसानों से स्मार्ट फोनों में
     बढ़ती भीड़ के तन्हा  कोनों में
     लोगो की बंद ज़ुबानों में
     कच्चे या पक्के मकानों में
    
     बस अब अकेले मुस्कुराने का नाम है ज़िन्दगी
     संग हमसफ़र के एकाकी बीतने का नाम है ज़िन्दगी
     आजकल कुछ बदल सी गयी है ज़िन्दगी
     चलती तो है मगर कुछ थम सी गयी है ज़िन्दगी
    
     आजकल  बच्चे पड़ोस की घंटी नहीं बजाते
     गुस्सैल गुप्ता जी का शीशा फोड़ भाग नहीं जाते
     स्कूल बस के स्टॉप पे खड़ी मम्मियाँ आपस में नहीं बतियाते
     दफ्तर से लौट दिन भर की खबर मांगने वाले वो पापा नहीं आते
    
     अब फेसबुक पे लाइक और  चैट-ग्रुप में क्लैप करने का ढंग है ज़िन्दगी
     फुल एचडी विविड कलर में भी बेरंग हो चली है ज़िन्दगी
     आजकल कुछ बदल सी गयी है ज़िन्दगी
     चलती तो है मगर कुछ थम सी गयी है ज़िन्दगी
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    एक शहर था…

    एक शहर था प्यारा फ़ूलों का
     महका करती थी हर गली जिसकी
     दिल दरिया हुआ करता था उसके लोगों का
     समाते थे जिस में विभिन्न जाति प्रांत के लोग सभी
    
     फिरते थे जब गली बाज़ारों में
     अनेकों बोलियां श्रवण में आती थी
     पोंगल दशहरा हब्बा ईद त्योहारों पर
     गलियां एक सी सजती थी
    
     फिर एक दिन सब कुछ बदल गया
     सिक्का मतलबपरस्ती का मानो ऐसा चल गया
     काम छोड़कर नामों मे पहचान हर किसी की ढूंढी गई
     पानी ने आग लगा डाली पहले जो बुझाया करती थी
    
     जल रहा वो शहर फूलों का
     दहक रही हैं गलियां अब उसकी
     तांडव हिंसा का चल रहा
     कौन सुन रहा गुहार उसकी
    
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    तू है

    मेरी आदतों में मेरी ज़रूरतों में 
     मेरे दर्द में मेरी ख़ुशियों में
     मेरी शामों में मेरी हर सुबह में
     हर रोज़ के हर पल में
     मेरे होने में और न होने में 
     हर सूरत हर हाल में
     बढ़ती थमती साँसों में 
     गुज़रते वक़्त की चाल में
     मंदिर गिरजा की घंटियों में 
     शबद में आयतों में
     लक्ष्मी दुर्गा सरस्वती में 
     बेटी माँ सखी और संगिनी में
     तू है तो हूँ मैं 
     तू है तो हूँ मैं
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    आज… कल…

    मेरा आज जाने क्यों मेरे कल से रूठा है
     पल पल कुढ़ता है उसे सोच के जो बीता है
     नाराज़गी इस क़दर है की कहता है कल झूठा है
     कैसे बतलाऊँ की हर आज बीते कल में भी जीता है
    
     सपने तो बहुत देखें थे आज के लिए मेरे कल ने
     अरमान भी बड़े बड़े सजाए थे मुस्तकबिल के
     कितनी शिद्दत भरी थी कल की हर एक दुआ में
     महनत भी शामिल थी जिसके की कल काबिल थे
    
     पर मेरे आज को तो अपनी हक़ीक़त से मतलब है
     जो सच हुआ, हो पाया, बस वही तो आज और अब है
     हसरतें लेकिन मेरे आज की भी कम नहीं, बहुत हैं
     कुछ ज़्यादा, कुछ बेहतर, कुछ बढ़कर मेरे आज की तलब है
    
     क्यों मेरा आज बीते अपने ही कल को नहीं पहचानता
     क्यों वो अपना समझ के मेरे कल का हाथ नहीं थामता
     आनेवाली सुबह में खुद गुल हो जाएगा क्यों नहीं मानता
     वो भी किसी आज का कल होगा क्या ये नहीं जानता
    
     भला सोचो सब जान के भी यूँ अनजान बना क्यों मेरा आज पड़ा है
     किस लिए आज ज़िद्द पकड़े अपनी बात पे ही ऐसे अड़ा है
     पहला तो नहीं है शायद मेरा ये आज जो अपने कल से लड़ा है
     एक बीत गया, एक आया नहीं, बस यही आज है जो वास्तव में खड़ा है
    
    
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    आशाएँ

    लो आ गया जन्मदिन, आ गयी फिर एक सालगिरह
     हम इस गोले संग एक सौर्य परिक्रमा और कर आए
     कुछ साल पहले तक तो थे काले घने
     अब तो दाढ़ी के बाल भी पकने को आए
     उम्मीदें जो बचपन ने जवानी से की थी
     कुछ भूल ही गए, कुछ सच हुईं, कुछ निभी न निभाए
     दौर तो अच्छे बुरे जैसे तैसे सारे ही बीत गये
     हासिल तो वो है जो दोस्त सदा संग पाए
     आशाएँ जीवन से आज भी हैं समय अब चाहे जितना हो
     ज़रूरी ये नहीं के सारी पूर्ण हों, बस कोई कोशिश अधूरी न रह जाए
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    अक्स

    याद है क्या तुमको वो ज़माना
     College के lecture में न जाना
     बना के कोई भी अजीब सा बहाना
     नज़दीक के cinema पे overtime लगाना
    
     कितनी बेफ़िक्री से जिया करते थे हम
     यारी दोस्ती इश्क़ मोहब्बत का भरते थे दम
     उम्मीदें थी मुस्तकबिल से और माज़ी से गिले कम
     मज़बूती से पड़ा करते थे ज़मीन पे कदम
    
     चलो उसी भूले खोए खुद को ढूँदतें हैं
     एक साँस इस दौड़ती ज़िंदगी को रोक के लेतें हैं
     अपने जवान अक्स को एक मौक़ा और देतें हैं
     आने वाले हर लम्हे से ख़ुशी को घोट के पीतें हैं