Hindi Poetry | कविताएँ
पढ़ें सुधाम द्वारा लिखी कविताएँ। सुधाम के लेखन में श्रृंगार, करुणा, अधभुत आदि रसों का स्वाद सम्मिलित है।
जो कह न सका
कहने को तो बहुत कुछ है लेकिन आज भी कहा नहीं जाता ऐसा होता तो है मगर होता क्यों है के दिल में आया ख़याल अंजाम नहीं पाता काश के कह दिया होता जो कहना था फिर वक़्त पे मैं ये इल्ज़ाम न लगाता आपकी इज़्ज़त करना जिसे सोचा था उस एहतिराम को बीच का फ़ासला न बनाता अब उम्मीद यही करता हूँ हर बार ये के सुन ही लेते थे आप जो मैं ज़ुबान पे न लाता यक़ीनन पहुँच रहा होगा मेरा दर्द भी ये वरना इतना मुझ से अकेले सँभाला नहीं जाता बस गयें हैं आप शायद अब कहीं मुझ में ही आप से जुदा चेहरा मेरा आईना नहीं बतलाता हर रोज़ रूबरू होता हूँ मैं यूँ अब आप से इसीलिए मैं इस बात का शोध नहीं मनाता कहने को तो बहुत कुछ है लेकिन आज भी कहा नहीं जाता
Shunya (शून्य)
शून्य से जन्मा हूँ मैं और शून्य में मिल जाऊँगा इस मेल के अंतराल में जीवन काल मैं बिताऊँगा अल्प है किंतु ये पूर्ण ये विराम नहीं आज के गगन का अस्त सूर्य ये हुआ नहीं मात्र कुछ शब्द कह वाणी ये न थम पाएगी पंक्तियाँ इस वाक्य की महाकाव्य ही रच जायेंगी स्वयं है लिखि जा रही हस्त की ये रेखा नहीं सीख ली है हर उस बाण से जिसने लक्ष्य भेदा नहीं कर्म मैं अपना करूँ आगे बढ़ता जाऊँगा भाग्य की धरती से मैं फल नहीं उपजाऊँगा पाया जो पितृ-तात् से दंभ उसका किंचित् भी नहीं आशंका मात्र इतनी है वृद्धि उसमें कर पाऊँ कि नहीं नयनों को विश्वास है स्वप्न सच हो जाएँगे कष्ट करने वालों को कृष्ण मिल ही जाएँगे पथ पे चल पड़ा हूँ जिस आपदा का अब भय नहीं न मिले या मिलतीं रहें उपलब्धियाँ मेरा अस्तित्व नहीं शून्य हूँ मैं और शून्य में मिल जाऊँगा अंत की अग्नि में जल कल राख़ मैं बन जाऊँगा
Us Raat Ki Baat (उस रात की बात)
उस रात की बात कुछ और ही थी दिलचस्प क़िस्सों और यादों की होड़ सी थी नये पुराने रिश्तों बीच लगी एक दौड़ सी थी चेहरे जो धुंधला गए थे वो साफ़ खिल गए कुछ मलाल भी होंगे जो उस रात धुल गए बीते सालों का असर कहीं छिपा कहीं ज़ाहिर था गहराते रिश्तों के मंज़र का हर शक्स नाज़िर था इतनी हसीन थी मुलाक़ातें के शाम कम पड़ गई या यूँ कह दें की अपना काम बहती जाम कर गई ख़ुशियों का उठता ग़ुबार बारिश भी दबा न सकी लगी जो आग है मिलन की वो कब है रुकी उस रात की बात कुछ और ही थी उस रात की बात कुछ और ही थी
Khayal (ख़याल)
ख़याल कुछ यूँ आया कि बहुत दिन हुए कुछ लिख़ा नहीं उसी के हाथ थामे ख़याल एक दूसरा आया कि बीते दिनों लिखने लायक कुछ दिखा नहीं अब ख़यालों का कुछ ऐसा है कि एक-दो पे कभी सिलसिला रुका नहीं फिर लगा कि इस बात पे ही कुछ कह देतें हैं कम होता है कि लिखने बैठें और क़ाफ़िया मिला नहीं दम भर ले शायरी का जितना भी बात ग़ाफ़िल ये मुख़्तसर सी है कि शायर तेरी भरी तिजोरी भी बिना लफ़्ज़ों के समझो ख़ाली ही है
Kisi Roz (किसी रोज़)
कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे एक बार पीछे मुड के देखा के नहीं याद में हमारी दो बूँद रोये के नहीं कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे जब भी गुज़रे होगे तुम गली से हमारी एक नज़र तो फ़ेराई होगी दर पे हमारी कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे वो जो यादें बनाई थीं उन यदों का क्या हुआ वो जो क़समें लीं थी उन क़समों का क्या हुआ कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे के इतने बरसों में तुमने क्या क्या भुला दिया जो थी कशिश दरमियाँ उसे कैसे मिटा दिया कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे क्या समझे थे जिसे वो प्यार था भी या नहीं क्या ये दर्द बेवजह है और तुम बेवफ़ा नहीं कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे
Ekant (एकांत)
बीती रात खिचे परदों के उस तरफ
कड़कती बिजली, तेज़ हवाओं का शोर
और गरजते बादलों का कोलाहल था
इस तरफ़ था बीतते पलों का एहसास
कट गई या करवटों में काट दी
चैन की नींद मानो एक एहसान थी
आँख जब खुली तो सन्नाटा सा था
परदों के बीच एक किरण फूट रही थी
जैसे उस पार के नज़ारे का न्योता दे रही थी
भोर का चित्त निशा के विपरीत मौन था
खुले परदों और गुज़री रैन के कालांतर में
एकांत का वज़न और बदला दृष्टिकोण थाDil Chahta Hai (दिल चाहता है)
इस दौड़ती थकाती ज़िंदगी से
एक पल चुराना ये दिल चाहता है
किसी भूले से पसंदीदा एक गीत के
दो बोल गुनगुनाना ये दिल चाहता है
बिन मतलब बंध जाते थे जो
ऐसे मीत ये दिल चाहता है
बिन मौसम बेइंतहा बरसती रहे जो
ऐसी प्रीत ये दिल चाहता है
ख़र्च अपने किसी शौक़ पे कर सकें
वो फ़ुरसत ये दिल चाहता है
चल पड़ें किसी रूमानी डगर पर
ऐसी हिम्मत ये दिल चाहता है
कथनी करनी में भेद ना हो जिनमें
वो बोल बोलना ये दिल चाहता है
मर्यादा जो मनसपूर्ण और सच्ची हो
वो लेना-देना ये दिल चाहता है
चाहत में जहाँ निजी स्वार्थ न हो
वो दुनिया ये दिल चाहता है
बिन माँगे पूरी करे जो सबकी दुआ
ऐसा ख़ुदा ये दिल चाहता हैHumsafar(हम)सफर
मीलों का ये सफ़र है
तेरे संग जो है तय करना
एक नहीं कई मंज़िलें हैं
तेरे साथ जिनको है पाना
मिलेंगे राहगुज़ार और भी हमें
कुछ मिलनसार कुछ बदमिज़ाज होंगे
कोई उकसायेगा कोई भटकायेगा हमें
जूझेंगे उनसे और हर सितम झेल लेंगे
मुश्किलें भी कई पेश आयेंगी
हालात हमारे ख़िलाफ़ होंगे
कुछ पल को राहें भी जुदा लगेंगी
मगर एक दूसरे को हम सँभाल लेंगे
सात कदम, सात जन्म, सात समंदर
मेरी नज़र में हर दूरी तेरी सोहबत में कम है
तू जहाँ वहीं चैन वहीं सुकून है दिल के अंदर
मोहब्बत और दोस्ती पाने नहीं निभाने का नाम हैतक़दीर
एक दिन तक़दीर रुबरू हुई
पूछने लगी कैसे हैं हाल
जवाब में खुद ही बोली
मैं तुम्हारी हूँ यही है कमाल
फिर बीते कुछ और दिन महीने साल
ज़िंदगी की किताब में बाब जुड़ते गए
होने लगा कुछ और यक़ीन उस मुलाक़ात पे
दौर कुछ और कुछ हसीं कुछ तंग गए
बस वो दिन था और एक आज है
हर गुज़रे पल की एहमियत पहचानते हैं
मिली थी जो उस दिन यकायक हमें
वो तक़दीर तुम हो बस ये जानते हैं
तुम ख़ुश रहो ख़ुशहाल रहो
हर दिन ये दुआ माँगते हैं
तुम्हारी हर ख़ुशी में है हमारी ख़ुशी
उस रोज़ से हम यही मानते हैंरिश्ता
न पूछो क्यों
बस इतना जान लो
ये रिश्ता गहरा है
दूरियाँ भले कितनी हों
तार जुड़े ही रहेंगे
ये रिश्ता गहरा है
वक़्त के पन्ने
चाहे जितने पलट लो
ये रिश्ता गहरा है
ख़याल मिले थे
दिल मिलते रहेंगे
ये रिश्ता गहरा है
एक उम्र निभाई है
एक उम्र का वादा है
ये रिश्ता गहरा है