Hindi Poetry | कविताएँ
पढ़ें सुधाम द्वारा लिखी कविताएँ। सुधाम के लेखन में श्रृंगार, करुणा, अधभुत आदि रसों का स्वाद सम्मिलित है।
साया
लिखने की चाहत तो बहुत है जाने क्यों कलम साथ नहीं जज़्बात सियाही से लिखे लफ़्ज़ नहीं मेरे बेलगाम बहते अश्क़ बयां कर रहें हैं अभी तो बैठे थे फ़िलहाल ही लगता है पलट गयी दुनिया कैसे ये मालूम नहीं जाने वाले की आहट भी सुनी नहीं सर पे से अचानक साया हठ गया है वो जो ज़ुबान पे आ के लौट गयी वो बातें बाक़ी है अब कहने का मौक़ा कभी मिलेगा नहीं हाय वक़्त रहते क्यों कहा नहीं कुछ दिन से ये सोच सताती है अल्फ़ाज़ बुनता हूँ मगर उधड़ जाते हैं ख़यालों जितना उन में वज़न नहीं डर भी है ये विरासत कहीं खोए नहीं मगर यक़ीन-ए-पासबाँ भी मज़बूत है लिखने की चाहत तो बहुत है जाने क्यों कलम साथ नहीं जज़्बात सियाही से लिखे लफ़्ज़ नहीं मेरे बेलगाम बहते अश्क़ बयां कर रहें हैं
पहल
खुद से कुछ कम नाराज़ रहने लगा हूँ ऐब तो खूब गिन चुका खूबियाँ अपनी अब गिनने लगा हूँ मैं आजकल एक नयी सी धुन में लगा हूँ अपने ख्यालों को अल्फाजों में बुनने लगा हूँ मैं गैरों के नगमे गुनगुनाना छोड़ रहा हूँ अब बस अपने ही गीत लिखने चला हूँ मैं कुछ अपने से रंग तस्वीर में भरने लगा हूँ आम से अलग एक पहचान बनाने चला हूँ मैं अंजाम से बेफिक्र एक पहल करने चला हूँ अपने अन्दर की आवाज़ को ही अपना खुदा मानने लगा हूँ मैं खुद से कुछ कम नाराज़ रहने लगा हूँ
परिचय
आज धूल चटी किताबों के बीच ज़िन्दगी का एक भूला पन्ना मिल गया धुँधले से लफ़्ज़ों के बीच पहचाना सा एक चहरा खिल गया अलफ़ाज़ पुराने यकायक जाग उठे मानो सार नया कोई मिल गया दो पंक्तियों के चंद लमहों में एक पूरा का पूरा युग बीत गया आज धूल चटी किताबों के बीच मुझ को मैं ही मिल गया
ए ज़िन्दगी
ज़िंदगी तुझ से न कम मिला न ही ज़्यादा पाया खुशियाँ मिली तो गमों का भी दौर आया मिली दीवाली सी रोशनी तो कभी दिया तले अंधेरा पाया तूने जब दी तनहाई मुड़ के देखा तो साथ कारवाँ पाया क्यों करें शोक हम तेरी किसी बात का क्यों ज़ाया करें अभी तुझ पे जस्बात तू जो भी दे मज़ा तो हम पूरा लूटेंगे गिरें गर कभी तो फिर उठ खड़े होंगे इंतेज़ार है उस दिंन का जब होंगे तेरे सामने तेरी हर एक देन को "once more" कहेंगे तब तक किसी चीज़ से शिकवा है न किसी से मलाल तू जो भी दे मंज़ूर है गवारा है हर हाल
फुर्सत
ये फुर्सत क्यों बेवजह बदनाम है क्यों हर कोई यह कहता के उसको बहुत काम है इस तेज़ दौड़ती, बटे लम्हों में कटती ज़िन्दगी का, चलना ही क्यों नाम है कैसे रूकें, कब थामें, एक पल को भी न आराम है कब घिरे कब छटे ये बादल, आये गए जो मौसम सारे न किसी को सुध न ध्यान है पलक झपकते बोले और चले जो, अपना खून खुद से अनजान है ये फुर्सत क्यों बेवजह बदनाम है बस यही तो है जो अनमोल हो कर भी बेदाम है
रंग
इस रंग बदलती दुनिया से हमने भी थोड़ा सीख लिया कुछ दुनिया से हमने रंग लिया और खुद को थोडा बदल लिया कभी किस्मत ने हमको गिरा दिया तो कभी वक़्त ने हमें सता दिया सब सोचें हमको क्या मिला हम सोचें कितना जान लिया जाने पहचाने चेहरों को भीतर से पढना सीख लिया सच और झूठ के फेरों में काले को कोरा कहना सीख लिया कुछ खुद को थोडा बदल लिया कुछ दुनिया को हमने रंग दिया इस रंग बदलती दुनिया से हमने भी थोड़ा सीख लिया
तुझे उड़ना है
तुझे उड़ना है इस लिए नहीं कि तुझे पँख मिलें हैं तुझे उड़ना है इस लिए कि तेरे दिल में अरमान हैं तुझे उड़ना है इस लिए नहीं कि तुझे हौंसले मिलें हैं तुझे उड़ना है इस लिए कि ऊपर खुला आसमान है तुझे बढ़ना है इस लिए नहीं कि राहें मिलीं हैं तुझे बढ़ना है इस लिए कि मंज़िलें तेरी पहचान हैं तुझे बढ़ना है इस लिए नहीं कि साथी मिलें हैं तुझे बढ़ना है इस लिए कि तू खुद में एक कारवाँ है तुझे फलना है इस लिए नहीं कि तुझमें मातृत्व है तुझे फलना है इस लिए कि तू ही जीवन वरदान है तुझे फलना है इस लिए नहीं कि आज तुम्हारा है तुझे फलना है इस लिए कि तू है तो कल ये जहान है हाँ तुझे फलना है हाँ तुझे बढ़ना है हाँ तुझे उड़ना है
यादें
कुछ यादें एक खलिश सी होती हैं बरसों दिल में सुलघ्ती रहतीं हैं दबती छुपती तो हैं मगर दहकती रहतीं हैं बीतते सालों का मरहम पा के भी दर्द देती हैं गुज़रा वक़्त सब कुछ भुला नहीं देता मन में बसा चेहरा धुन्दला नहीं देता तेरी मुस्कान दिल में अभी भी गूंजती हैं ये पलकें आज भी तुम को ढूँढती हैं तुम्हे याद कर यह आँखें दो बूँद और रो देती है नहीं लिखा था शायद साथ तुम्हारा होगी किसी खुदा की मर्ज़ी पर हमें नहीं है गवारा गलती तो खुदा से भी होती है यादें आ आ कर बस येही सदा देती हैं
बादल
गुमनाम बिन पहचान फिरते रहते हैं ये कैसे अनदेखे अनसुने से घिर आते हैं ये उबाले समंदर के नहीं बनते है ये बिन मौसम तो कम ही दिखतें हैं ये मुरीदों की सौ सौ गुहार सुन कभी चंद बूँदें तो कभी बौछार बरसा जातें हैं ये ये बादल कभी सफ़ेद नर्म रुई से तो कभी काले धुऐं की तरह छा जातें हैं जाने कितनी उमीदों का बोझ ले कर चलते हैं ये अब के सावन उम्मीद लिए एक बादल मेरा भी होगा सूरज की रोशन गर्मी को मध्धम करने का बल मुझ में भी होगा कभी तेज़ चलने तो कभी रुख पलटने का दौर मेरा भी होगा जम के बरसेंगे बादल जो अब तक नहीं थे गरजे आसमान पे छाने का मज़ा कुछ और ही होगा वक़्त के अम्बर पे एक हमसफ़र मेरा भी होगा अब के सावन उम्मीद लिए एक बादल मेरा भी होगा
अनकही
मैंने अनकही सुनी है सुनी है मैंने वो सारी बातें जो किसी ने मुझसे न कही है सहमी हुई धडकनों की आवाज़ छपक्ति पलकों के अंदाज़ तेज़ दौड़ती साँसों की हर बात इन सब में छुपे वो सारे राज़ हाँ मैंने अनकही सुनी है मुस्कुराहटों के तले दबी तड़पन बदलते सुलघते रिश्तों में पड़ती अड़चन बर्बादी की ओर बढ़ते कदम अंजाम से अनजान बेपरवाह उन सभी समझौतों को हाँ मैंने अनकही सुनी है ऊँची उड़ानों में डूबते अरमानों को बुरे वक़्त में बदलते इंसानों को दोस्ती में पड़ती दरारों का आगाज़ टूटे दिल में थमती हरकत मासूम आँखों ने जो पूछे तमाम उन सभी सवालों को हाँ मैंने अनकही सुनी है सुनी है मैंने वोह सारी बातें जो किसी ने मुझसे न कही है