ड़ोर

उम्मीद की इक ड़ोर बांधे एक पतंग उड़ चली है
 कहते हैं लोग के अब की बार
 बदलाव की गर्म हवाएं पुरजोर चलीं हैं
 झूठ और हकीक़त का फैसला करने की तबीयत तो हर किसी में है
 कौन सच का है कातिल न-मालूम मुनसिब तो यहाँ सभी हैं
 सुर्र्खियों के पीछे भी एक नज़र लाज़िमी है
 गौर करें तो ड़ोर की दूसरी ओर हम सभी हैं
 अपने मुकद्दर के मालिक हम खुदी हैं