मेरे देश का परचम आज लहरा तो रहा है
लेकिन इर्द गिर्द घना कोहरा सा छा रहा है
देश की हवाएं कुछ बदली सी हैं
कभी गर्म कभी सर्द तो कभी सहमी सी हैं
यूँ तो विश्व व्यवस्था में छोटी पर मेरा भारत जगमगा रहा है
पर कहीं न कहीं सबका साथ सबका विकास के पथ पर डगमगा रहा है
स्वेछा से खान पान और मनोरंजन का अधिकार कहीं ग़ुम हो गया है
अब तो बच्चों का पाठशाला आना जाना भी खतरों से भरा है
सहनशीलता मात्र एक विचार और चर्चा का विषय बन चला है
गल्ली नुक्कड़ पर आज राष्ट्रवाद एक झंडे के नाम पर बिक रहा है
क्या मुठ्ठी भर लोगों की ज़िद को लिए मेरा देश अड़ा है
क्यों हो की एक भी नागरिक आज इस गणतंत्र में लाचार खड़ा है
मेरे देश का परचम आज लहरा तो रहा है
लेकिन इर्द गिर्द घना कोहरा सा छा रहा है