नाज़ुक होतें हैं ये
सम्हाल कर इन्हें रखिएगा
रेशम की डोरियाँ हैं ये
गर तन जायें तो ज़ख़्म ही पाइएगा
क्यों कर उलझते हैं रिश्ते
सर्द शीशे से चटक जातें हैं रिश्ते
जाने कब और कैसे बिखर जातें हैं
यकायक अपने बेपरवाह हो जातें हैं
कब बचा है कोई इस रंज-ओ-ग़म से
किसे मिलती है दवा जियें जिस के दम पे
यारी दोस्ती प्यार वफ़ा सब बेमानी है
बिगड़ी भली जैसी हो बस चलानी है
गाँठ पड़ी डोर तो कमज़ोर हो ही जाती है
जुड़े आइने में दरार फिर भी नज़र आती है
नाते रिश्तों की तो बस यही कहानी है
जो हाथ लगा वो मिट्टी जो बह गया सो पानी है