बटवारा
मेरे देश का फिर बटवारा हो रहा है सैंतालीस में मुद्दा ज़मीन थी आज कल जंग है यकीन की इक अंधा सा जोश सर पानी हो चला है आज की अदालत प्रचार माध्यम हैं जूरी जन्ता और हर घर अदालत है अपने यकीं को लिए हर शक़्स कटघरे के दोनों तरफ खड़ा है आज़ादी बोलने की पुरज़ोर आज़मातें हैं शब्दों के वार का अजब सिलसिला है बोल-चाल में सब्र कहीं ग़ुम हो गया है दो बाटन के बीच मेरा मुल्क पिस रहा है ख़ेमे बटे हुए हैं रंगों के चहुँ ओर कहीं भगुआ तो कहीं हरे की लग रही है होड़ बिना मंज़िल की लगी दौड़ है मेरे देश का फिर बटवारा हो रहा है