धुन
अनसुनी सी एक धुन है लफ़्ज़ जिसमें गुम हैं सुर उसके सासों से सजते हैं और देती धड़कनें ताल हैं दबी हुई थी कहीं वो सालों से जाने किस पल के इंतेज़ार में ख़ुद से ख़ुद बेख़बर हो के मानो कुछ ढूँड़ रही थी फ़िलहाल में एकाएक दिल के ढोल जब बजने लगे सहमे सुस्त पड़े पैर थिरकने लगे होंठ बजाने लगे जब यूँ ही सीटियाँ हाथ दोनों जब स्वयं लगे देने तालियाँ लय बन लहर दौड़ गई है जो जीवन को जीवन्त कर रही है वो हर तान से एक नई तरंग जो उठती है इश्क़ नाम है धुन का - वही ज़िंदगी है अनसुनी सी एक धुन है लफ़्ज़ जिसमें गुम हैं