देखते देखते पूरा एक साल बीत गया श्रृष्टि के नियमानुसार फ़िर काल जीत गया जीवन है, लगी तो रहती ही है आनी जानी इस ताल को वश में कर पाया नहीं कोई ज्ञानी
समय और संवेदना हृदय की पीड़ा हर नहीं पाते कुछ रिश्ते किसी भी जतन भुलाए नहीं भुलाते साये जो हट जातें हैं बड़ों के कभी सिर से लाख चाहे किसी के मिल नहीं पाते फ़िर से
जीवन का चक्का तो निरंतर घूमता ही रहता है हर पल हर दिन एक नई कहानी गढ़ देता है पात्र बदल जातें हैं कुछ, कुछ बदले आतें हैं नज़र मोह का भी क्या है नया बना लेता है अपना घर
दौड़ती फिरती है ये यादें मगर कुछ बेलगाम सी बातों और आदतों में ढूँढ लेती हैं झलक उनकी बीते दिनों के किस्सों से अपना मन भर लेता हूँ मन हो भारी तो उनको बंद आँखों में भर लेता हूँ