रिश्ता-ए-उम्मीद
उम्र भर निभे ऐसी ही दोस्ती हो कहाँ और किस किताब में लिखा है गरज़ और ग़ुरूर के बाटों के बीच हर रिश्ता कभी न कभी पिसा है कुछ कही तो अक्सर अनकही आदतों हरकतों का भी असर बड़ा है कहते एक दूसरे को लोग कम मगर ख़ुशहाल रिश्ते के आढ़े अरमान खड़ा है बुरी आदत है ये उम्मीद रखने की कमबख़्त कौन कभी इस पे खरा उतरा है आइने में खड़े शक्स को भी ज़रा टटोलो कौन सा वादा उसने भी कभी पूरा किया है