आसान नहीं है ऐसा हो जाना
होता भी तो नहीं है ऐसा रोज़ाना
मिले, बैठे, फिर अपनी राह चले
इस से ज़्यादा कौन करता है भले
बात ये कुछ तीस बरस पुरानी है
चंद दोस्तों की ये अजब कहानी है
अलग भाव, अलग स्वभाव का व्यवहार था
आपस में यूँ घुल जाना अनूठा विचार था
लड़कपन की सूखी लकड़ियाँ तैयार थी
बस एक अल्लढ़ चिंगारी की दरकार थी
एक हॉस्टल के कमरे की ये दास्ताँ है
गहरी नींव पे खड़ा ये यारी का मकान है
कभी बिछड़े, कही झगड़े, कभी बस पड़े पड़े
कितने दिन ढले, रातें बीतें, कितने सूरज चढ़े
ज़िंदगी के कदम मीलों में कब कैसे बदल गए
बाल में सफ़ेद और वज़न सालों संग बढ़ गए
दूरी जो थी यारी को सिमटा मिटा ना सकी
नोक झोंक, छेड़ छाड़ की आग बुझी न रुकी
जीवन के कई उतार-चढ़ाव दोस्तों ने देखें हैं
साथ खड़े रहने, निभाने के क़िस्से अनोखे हैं
हर गुट, हर कहानी में कई किरदार होतें हैं
किसी सूरत में सेना, किसी में सरदार होते हैं
जो ना देखे ऊँच-नीच ना देखे दुनियादारी
कुछ ऐसी और लंबी चली है ये गाड़ी हमारी
अब तक सँभाली है बस यूँ ही चलानी है
बावजूद दूरी या मजबूरी पूरी निभानी है
क्यों की आसान नहीं है ऐसा हो जाना
और होता भी तो नहीं है ऐसा रोज़ाना