कहने को तो बहुत कुछ है
लेकिन आज भी कहा नहीं जाता
ऐसा होता तो है मगर होता क्यों है
के दिल में आया ख़याल अंजाम नहीं पाता
काश के कह दिया होता जो कहना था
फिर वक़्त पे मैं ये इल्ज़ाम न लगाता
आपकी इज़्ज़त करना जिसे सोचा था
उस एहतिराम को बीच का फ़ासला न बनाता
अब उम्मीद यही करता हूँ हर बार ये
के सुन ही लेते थे आप जो मैं ज़ुबान पे न लाता
यक़ीनन पहुँच रहा होगा मेरा दर्द भी ये
वरना इतना मुझ से अकेले सँभाला नहीं जाता
बस गयें हैं आप शायद अब कहीं मुझ में ही
आप से जुदा चेहरा मेरा आईना नहीं बतलाता
हर रोज़ रूबरू होता हूँ मैं यूँ अब आप से
इसीलिए मैं इस बात का शोध नहीं मनाता
कहने को तो बहुत कुछ है
लेकिन आज भी कहा नहीं जाता