फ़िलहाल

Filhaal -Abstract  used for a poem of the same name by Sudham.
कुछ दिनों से ऐसा लग रहा है
 के ज़िंदगी के माइने बदल गए
 इतना बदला हुआ मेरा अक्स है
 लगता है जैसे आइने बदल गए

 अभी तो कारवाँ साथ था ज़िंदगी का
 जाने किस मोड़ रास्ते जुदा हो गए
 अब तो साथ है सिर्फ़ अपने साये का 
 जो थे सर पर कभी वो अचानक उठ गए

 यूँ लगता जैसे किसी नई दौड़ का हिस्सा हूँ
 किरदार कुछ नए कुछ जाने पहचाने रह गए
 शुरूवात वही पर अंत नहीं  एक नया सा क़िस्सा हूँ
 जोश भी है जुंबिश भी जाने क्यूँ मगर पैर थम गए

 एहसास एक भारी बोझ का है सर और काँधे पे भी
 पास दिखाई देते थे जो किनारे कभी वो छिप गए
 प्रबल धारा में अब नाव भी मैं हूँ और नाविक भी
 देखें अब आगे क्या हो अंजाम डूबे या तर गए

 इतने बदले हम से उसके अरमान हैं
 लगता है ज़िंदगी के पैमाने बदल गए
 कुछ दिनों से ऐसा लग रहा है
 के ज़िंदगी के माइने बदल गए