जो तुम होतीं

अरसे से दिल कुछ भारी सा है 
एक ख़याल दिमाग़ पे हावी सा है

माँ आज जो तुम दुनिया में होतीं
तो पूरे अस्सी साल की हो जातीं

तुम्हारे ना होने की आदत ही नहीं डल रही
इतनी यादें हैं तुम्हारी जो धुंधली नहीं पड़ रहीं

हर सुबह की वो नोंक-झोंक के चाय कौन बनाएगा
या इस बात पे बहस की क्या कभी देश में
राम राज्य आयेगा

कईं और भी मनसूबे किए थे जो बिखरे पड़े हैं
ख़त्म होने चलें हैं आँसू मेरे, नैनों में सूखे पड़ें हैं

इस बरस cake की मोमबत्ती नहीं तेरी याद में दिया जलेगा
वक्त को अब धीरे धीरे मेरा ये ज़ख़्म भी भरना पड़ेगा

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