चिट्ठी

मैं ख़ुश हूँ पापा 
और मुझे मालूम है
के इस बात को जान
आप कई ज़्यादा ख़ुश होते

बीते चार सालों में
कुछ पाया और
बहुत कुछ खोया है
“जीवन है”, आप यही कहते

बड़ी वाली की बातों
छोटी की आदतों
आपकी बहू के अक्खड़पन में भी
आप मुझे नज़र आते हो

हर रोज़ मैं अपने आप को
आपके जैसे किसी साँचे में
ढालने की हिम्मत जुटाता हूँ
कुछ देर के लिए आप बन जाता हूँ

बातें तो बहुत और भी थीं
जो बताने सुनाने की सोची थी
आप पास ही हो कहीं शायद
क्योंकि इस ख़याल से अब भी सहम जाता हूँ

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