श्री राम कहो, रामचंद्र कहो
कोई भजे सियाराम है
कोई कहे पुरुषोत्तम उनको
मानो तो स्वयं नारायण है
कुछ तो बात होगी ही न उनमें
की राम भावना युगों से प्रचलित है
सहस्रों हैं वर्णन उनके, सैंकड़ो हैं गाथाएँ
जो राम हैं हमारे वह तो हर कण में रमित हैं
आज सज रहा शहर मोहल्ला
सजी सजी हर गली भी है
लहरा रही हनुमान पताका
श्री राम लहर जो चली है
जलेंगे आज दीप घर घर में
पौष में मन रही दिवाली है
प्रस्थापित होंगे राम लल्ला अवध में
हर मन प्रफुल्लित और आभारी है
पुनः निर्मित हो रहा है जो
केवल मंदिर नहीं स्वाभिमान है
यह किसी धर्म संप्रदाय की विजय नहीं
धरोहर हैं हम जिसकी उस सभ्यता का उत्थान है
हो सम्मान जहाँ हर नर का
सम्मानित जहाँ हर नारी है
प्रेरित हो जो राम राज्य से
उस भारत की रचना ज़िम्मेदारी है
राम आस्था राम विश्वास
राम जीवन की सीख हैं
राम रामत्व रम्य रमणीय
राम इस संस्कृति के प्रतीक हैं
कोई कहे पुरुषोत्तम उनको
मानो तो स्वयं नारायण है
श्री राम कहो, रामचंद्र कहो
कोई भजे सियाराम है