अक्स
याद है क्या तुमको वो ज़माना College के lecture में न जाना बना के कोई भी अजीब सा बहाना नज़दीक के cinema पे overtime लगाना कितनी बेफ़िक्री से जिया करते थे हम यारी दोस्ती इश्क़ मोहब्बत का भरते थे दम उम्मीदें थी मुस्तकबिल से और माज़ी से गिले कम मज़बूती से पड़ा करते थे ज़मीन पे कदम चलो उसी भूले खोए खुद को ढूँदतें हैं एक साँस इस दौड़ती ज़िंदगी को रोक के लेतें हैं अपने जवान अक्स को एक मौक़ा और देतें हैं आने वाले हर लम्हे से ख़ुशी को घोट के पीतें हैं